पटना । पटना में पानी खडा है। पानी ठहरा हुआ है। जल जमाव है। पानी रुका हुआ है। चाहे आप जो लिख और पढ लीजिए लेकिन पटना में पानी को निकलने का रास्ता नहीं है। वो आम लोगों से कह रहा है कि आपको बहना होगा, क्योंकि हम बह नहीं सकते। वो जाम में फंसे हुए उस एम्बुलेस की तरह है जिसे पता है कि उसके रुकने से मरीज मर जायेगा लेकिन वो आगे कैसे जायेगा। यह विपदा प्राकृतिक नहीं है। यह विपदा पैदा की गयी है। नेताओं, अफसरों और ठेकेदारों की मिली भगत से। सरकार ऐसे हालात का इंतजार करती है। एनजीओ मदद को पहुंच जाता है और सरकारी महकमा राहत लूटने में लग जाती है। यह सब सिस्टम का हिस्सा बन गया है। न लोग बदल रहे हैं न सत्ता बदल रही है। पटना डूबा हुआ है और सांसद से विधायक तक गायब हैं। मेयर सडक पर नहीं दिखी हैं और वार्ड पार्षद को तो आम लोग पहचानते भी नहीं हैं। आपदा प्रबंधन विभाग को पता ही नहीं है कि उसे करना क्या है और शहरी विकास विभाग यह जानने को बेताब है कि जल जमाव से निपटने के लिए जो पैसा आयेगा वो नगर निगम खर्च करेगा या शहरी विकास विभाग।
अखबार और टेलीविजन अपने अपने व्यावसायिक हितों को देखते हुए सूचनाओं को प्रसार कर रहे हैं, लेकिन सोशल मीडिया में जो जानकारी आ रही है वो यह बताने के लिए काफी है कि जिसे आपदा कहा जा रहा है दरअसल वो ‘आ भी जा’ है। सरकार के निमंत्रण पर आयी आफत, जिससे आम लोगों के सपने डूबेंगे और सरकारी अधिकारी और नेताओं के सपने पूरे होंगे।
लगभग 80 फीसदी पटना शहर जल प्लावित है। हर जगह कम से कम एक फुट पानी तो जमा है ही। जाहिर सी बात है तकरीबन हर मुहल्ले में ग्राउंड फ्लोर वाले घरों में पानी घुस आया होगा। राजेन्द्र नगर, कंकड़बाग, पाटलीपुत्रा आदि मोहल्ले तो लबालब हैं। कमर से छाती भर पानी हर जगह हैं। और इस स्थिति में अभी परसों से पहले सुधार होना नहीं है। जिनके कच्चे मकान हैं, जो झोपड़पट्टी में रहते हैं उनका क्या हाल होगा यह सोच कर जी घबराता है। सरकार ने हेल्पलाइन जारी कर मान लिया कि हमारा काम हो गया। मगर ऐसे लोग रात कैसे गुजरेंगे कहना मुश्किल है।
विज्ञापन एजेंसी के मालिक आशीष भटाचार्य लिखते हैं कि जलजमाव की सबसे ज्यादा मार राजेन्द्र नगर इलाके में है। पूरा राजेंद्रनगर, बाजार समिति, गन्दा नाला, मैकडोवेल गोलम्बर जलमग्न है। लगभग 8 फिट पानी। यानी डुबाऊ परिस्थिति।
मिल रहे जानकारियों के अनुसार SDRF NDRF की टीम नाकाफी है। सामान्य लोगों तक सुविधाएं उपलब्ध नही की जा पा रही हैं। यह याद रखना चाहिए कि राजेन्द्र नगर और कंकरबाग़ इलाके में ही हमारे शहर के सबसे ज्यादा एकल बुजुर्ग रहते हैं। ज्यादतर के परिवार में कोई नहीं और उनके बच्चे पटना के बाहर हैं। इन बुजुर्गों तक अभी भी सरकारी सहायता नही पहुंची है। ये एक गम्भीर मसला है। प्रशाशन द्वारा जारी किए गए किसी नंबर पर कोई रिस्पांस नहीं मिलता। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा यह है कि DM और नगर आयुक्त भी फ़ोन नही लेते। कुछ गैर सरकारी संगठनों और कई अन्य युवा वोलेंटियर लोग चाह कर भी राहत सामग्री जैसे दूध, पावरोटी, कैंडल, माचिस पीड़ित परिवार तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं।प्रशाशन बोट/ नाव तक मुहैया कराने में नाकाम है। बल्कि प्रशासन वाले सिर्फ गिने चुने लोगों तक ही अपने को सीमित कर चुके हैं। इन बुजुर्गों की सुध लीजिये। आस पड़ोस में रहने वाले युवा और सक्षम लोग मदद ऐसे लोगों को मदद करें।
पत्रकार अमिताभ ओझा लिखते हैं कि लापरवाही की बाढ़….यह शब्द उपयुक्त है। अब जरा नजर सरकारी इंतजाम पर। दावा है …पटना के सभी सम्प हॉउस चालू है, हकीकत….किसी का मोटर जला है तो कही ऑपरेटर बीमार है। मलाही पकड़ी स्थित सम्प हॉउस का मोटर जल गया है। नया सम्प हाउस बंद है, जबकि पुराना कम क्षमता वाला रुक रुक कर चल रहा हैं। दावा…प्रभावित इलाकों में तैनात अधिकारी जिनका नंबर सार्वजनिक किया गया है 24*7 काम कर रहे है। हकीकत…अधिकांश अधिकारियों के नंबर स्विच ऑफ है या आउट ऑफ नेटवर्क…जो चालू है वो सिर्फ भरोसा देते है.
पत्रकार अमन झा लिखते है कि जलमग्न पटना में रिपोर्टिंग करने निकला था। कंकरबाग़/ राजेन्द्र नगर के तरफ होस्टल में रहने वाले छात्र/छात्राओं को होस्टल छोड़कर कहीं और चले जाने को कहा जा रहा है। एक होस्टल वार्डन से बात की तो पता चला कि, दो दिनों से बिजली नहीं आ रही है। पीने के लिए प्यूरीफाइड पानी तो छोड़िए समरसेबल का पानी तक नहीं है। रासन की दूकानें दूर-दूर तक बन्द है। यदि कहीं मिल भी जाए तो सामान लेकर घर तक पहुंचना नामुमकिन जैसा है।
कहीं कमर तक तो कहीं सीने तक पानी है। यदि कोई बीमार पड़ जाय तो यकीन मानिये अस्पताल पहुंचने के लिए एम्बुलेंस नहीं बल्कि कंधे पर उठा कर ले जाना होगा। उसमें भी बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही है। ग्राउंड फ्लोर का ऐसा कोई कमरा नहीं होगा जिसमें लबालब पानी न भरा हो।
शिवपुरी/ पाटलिपुत्रा/ इन्द्रपुरी/ राजीवनगर के हालात भी बद से बद्तर होते चले जा रहे हैं। अभी-अभी कई लोगों के घर खाना और रासन का सामान पहुंचा कर आया हूँ। रोड और नाले में फर्क नहीं दिखता। पैर में थोड़ी चोटें भी आ गयी। सरकार के दावे से ज्यादा दम बच्चों का कौआ उड़, मैना उड़ वाले खेल में नजर आ रहा है।
पत्रकार पुष्यमित्र लिखते हैं कि बाज़ार समिति वाली लड़कियों की पोस्ट डाली थी, आपको याद होगा। हमलोग उन लड़कियों के लिए कुछ नहीं कर पाये। होस्टल संचालिका ने सभी लड़कियों से अपने अपने घर जाने के लिए कह दिया। 60 लड़कियाँ थीं। सब एक एक कर निकलीं। कोई रेलवे स्टेशन की तरफ गयी तो कोई बस स्टैंड की तरफ। इस भीषण समय में जब बारिश बन्द होने का नाम नहीं ले रहा, हर जगह तीन से चार फुट पानी है, बारहवीं की ये लड़कियाँ अकेले कहां गईं होंगीं पता नहीं। उनके फोन भी बन्द हैं। हमारे सम्पर्क की एक लड़की जो अपने लोकल अभिभावक के घर पहुँची है उससे यह जानकारी मिली है।
अफसोस, इतना बेबस कभी नहीं हुआ था। जहां लोग फंसे हैं वहां जाने के लिए नाव चाहिये, जो ढूँढे नहीं मिल रहा। साथियों ने कुछ तैराकों से भी सम्पर्क किया, मगर वे बहुत पैसे मांग रहे हैं। NDRF की टीम तो सम्पर्क करने के 24 घंटे बाद किसी किसी जगह पहुंच रही है। नीतीश जी ने भावुक बयान दे दिया है। दिल्ली में मोदी जी का स्वागत हो रहा है।
युवा साथियों ने आफत में फंसे लोगों के रहने की व्यवस्था कर ली है, राहत पैकेट बन गये हैं। मगर मूल आवश्यकता नाव की है। जो उपलब्ध हो नहीं पा रही है। स्थिति यह है कि अब राजेंद्रनगर, कंकड़बाग और ऐसे इलाकों में लोगों को हेलीकाप्टर से रेस्क्यू कराया जाये। मगर अफसोस, सरकार की गति बहुत मंथर है। हम बेबस लाचार बने बैठे हैं।