राजनीतिक जानकारों की मानें तो बिहार में 23 मार्च से ही लॉकडाउन लागू किया गया. यानी केंद्र सरकार के फैसले से पहले बिहार सरकार ने यह निर्णय लेकर एक बुद्धिमतापूर्ण कदम उठाया था. जाहिर है बिहार सरकार की तारीफ हो रही थी. इसके बाद शुरुआती महीनों में देखें तो नीतीश सरकार ने कोरोना पर कंट्रोल कर लिया था, लेकिन लेकिन बाद के दौर में कुछ ऐसी परिस्थितियां आईं कि नीतीश सरकार उन परिस्थितियों के जाल में फंसती चली गई. आरोप यह लग रहा है कि सरकार ने जो भी कदम उठाए कन्फ्यूजन में ही उठाए. आखिर ऐसा क्यों कहा जा रहा है और वह कौन से कदम थे?
नीतीश कुमार के कन्फ्यूजन की कहानी
सबसे पहले कोटा से जब छात्रों को यूपी सरकार ने मंगवाना शुरू किया तो नीतीश सरकार वहां काफी कन्फ्यूज दिखी. पहले ना-नुकुर किया फिर बाद में वह भी राजी हो गए. इसके बाद जब प्रवासी मजदूरों का मुद्दा आया और नीतीश सरकार ने उन्हें लाने से मना कर दिया. इस बीच बड़ी संख्या में मजदूर पलायन कर बिहार आते ही गए. यहां भी नीतीश सरकार काफी कन्फ्यूज दिखी क्योंकि बिहार सरकार ने स्पष्ट स्टैंड नहीं लिया और मजदूरों को परमिशन भी नहीं दी और रोकने की कोशिश भी नहीं की गई.
8 जुलाई के बाद तीन गुना बढ़े कोरोना केस
हालांकि बाद के दौर में नीतीश सरकार ने केंद्र सरकार से कहकर ट्रेन भी चलवा दी, बावदूज इसके इस दौरान काफी अव्यवस्था और अफरा-तफरी का माहौल रहा. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि यहीं से कोरोना के संक्रमण में तेजी आई. दरअसल इन मजदूरों को सेफ पैसेज नहीं दिया जिसकी वजह से कोरोनावायरस के संक्रमण में काफी तेजी आई. आलम यह है कि 8 जुलाई को 13000 के आंकड़ा पर 8 जुलाई को कोरोना संक्रमितों की संख्या जहां लगभग 13 हजा थी वहीं 27 जुलाई 41000 के पार पहुंच गया. यानी इन 20 दिनों में 3 गुना मामले बढ़ गए.
धड़ाधड़ बदले गए स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव
इस बीच भी काफी कुछ डेवलपमेंट हुआ जैसे स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार को हटाकर उमेश कुमावत को प्रधान सचिव बनाया जाना यह कुछ ऐसा फैसला रहा कि बीच में कुछ ऐसा फैसला रहा है कि बीच में बीच युद्ध में जनरल को बदलने वाला जाहिर है इस फैसले को लेकर सवाल भी उठे बावजूद इसके नीतीश सरकार का फैसला था तो इसे मारना ही था लेकिन एक और बात तब सामने आया तब सामने आई जब एनएमसीएच के अधीक्षक की नीतीश सरकार तारीफ करते नहीं थकती थी उन्हें अचानक बदल दिया. इसके बाद फिर नए बनाए गए स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव उदय सिंह कुमावत को भी चलता कर उनकी जगह प्रत्यय अमृत को प्रधान सचिव बना दिया गया.
आखिर क्यों कन्फ्यूज्ड दिख रही है नीतीश सरकार?
यह हां यह सवाल यह नहीं है कि तबादला क्यों किया गया? प्रशासनिक कार्यों में तो ट्रांसफर होते रहते हैं. शासकीय कार्यों में तबादले भी होते रहते हैं, लेकिन सवाल इस पर नहीं है. सवाल यह है कि ऊपर के जितने भी उदाहरण हम देख रहे हैं उसमें नीतीश सरकार का कन्फ्यूजन दिख रहा है. ऐसा लगता है कि जमीन पर कैसे काम हो रहे हैं उसके बारे में उन्हें सही जानकारी नहीं मिल पा रही है और धड़ाधड़ फैसले लेते जा रहे हैं. लॉकडाउन लगाने से लेकर अनलॉक करने में भी बिहार सरकार कई बार कन्फ्यूज ही दिखी.
नीतीश सरकार पर सवाल तो उठेंगे ही!
वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि तंत्र इतना कमजोर है कि उस पर कुछ भी कहना कह ही है क्योंकि धरातल पर सच्चाई दावों के उलट है. स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव जो सारी बातों को कंट्रोल कर चुके थे उन्हें हटा दिया गया. इसके बाद जब दूसरे प्रधान सचिव ने विभाग के बारे में काफी कुछ समझ लिया तो फिर उन्हें ही हटा दिया गया. जाहिर है मैसेज तो गलत ही जा रहा है कि नीतीश सरकार को अपने ही निर्णयों और अपने द्वारा ही नियुक्त किए गए अफसरों पर भरोसा नहीं है.
स्वास्थ्य विभाग में क्या है कन्फ्यूजन?
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि हाल में ही सीएम नीतीश कुमार के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग में ही एक अधिकारी को पीएमसीएच में पदमुक्त इसलिए कर दिया गया कि उन्होंने सबके सामने हकीकत रख दी थी. ऐसी स्थिति में पूरी नौकरशाही भी तो कोई ब्रेव डिसीजन लेने में कन्फ्यूज ही रहेगी. हाल में उदय सिंह कुमावत का तबादला भी स्वास्थ्य मंत्री की शिकायत के बाद ही किया गया. जाहिर है किसी अधिकारी की स्वास्थ्य मंत्री से नहीं बनती है तो किसी को वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे पसंद नहीं करते हैं, ऐसे क्या कोरोना पर काबू पाया जाएगा?
ऐसी भी क्या मजबूरी कि…
अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि मंगल पांडे भजपा के कोटे से मंत्री हैं. नीतीश कुमार की मजबूरी भी समझी जा सकती है, लेकिन इसका खामियाजा तो नीतीश कुमार को ही भुगतना पड़ेगा. अगर प्रधान सचिव नकारा साबित हुए है तो विभाग के मंत्री पर क्यों नहीं सवाल खड़े होते हैं. अव्वल तो ये उचित रहेगा कि अभी सबसे संकटपूर्ण स्थिति में स्वास्थ्य विभाग ही है, ऐसे में सीएम नीतीश कुमार को बड़ा फैसला करना चाहिए और बिहार की जनता के हित में इस विभाग को अपने अंडर में ले लेना चाहिए, तभी कुछ स्थिति संभलने की उम्मीद की जा सकती है.