राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के अध्यक्ष व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) को लोग राजनीतिक लड़ाका भी कहते हैं. ये इसलिए क्योंकि कई विपरीत परिस्थितियों में भी वे कहीं झुके नहीं और कई बार तमाम दबावों के बावजूद समझौता नहीं किया. बीजेपी नेता व पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) की गिरफ्तारी उनके राजनैतिक जीवन की एक अमिट उपलब्धि कही जाती है. आज भी वे सेक्यूलर राजनीति का बड़ा चेहरा माने जाते हैं. हालांकि वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता और कभी बिहार की राजनीति में एकछत्र राज करने वाले लालू यादव (RJD Supremo) आज चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता हैं और रांची के होटवार जेल में बंद हैं. लेकिन, इसके पहले लालू यादव खुद और उसके बाद उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने बिहार में 15 वर्षों तक शासन किया था. तब उनकी सत्ता पर पकड़ थी और पूरे बिहार में हनक चलती थी. लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब वे राजनीतिक सीन से ही ‘गायब’ हो गए थे.
अज्ञातवास में चले गए थे लालू यादव
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि एक दौर ऐसा भी आया जब लालू शासन का अवसान काल कहा गया. ये था वर्ष 2005. तब बीजेपी के सहयोग से नीतीश कुमार ने लालू-राबड़ी से शासन की बागडोर छीन ली थी. हालांकि तब भी लालू यादव ने हौसला नहीं छोड़ा था और अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए तमाम रणनीतियां तैयार की थीं. मगर वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में भी जब लालू की पार्टी आरजेडी की हार हुई और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) फिर से सत्ता पर काबिज हुए तो लालू यादव (Lalu Yadav) ने 2010 के विधानसभा नतीजों के बाद ‘अज्ञातवास’ ले लिया था. कहा जा रहा था कि वे राजनीतिक सदमें में चले गए थे.
गौरतलब है कि वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में भी आरजेडी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर 243 में से 206 सीटें जीती थीं. वहीं लालू प्रसाद यादव की आरजेडी को 22 सीटें और सहयोगी एलजेपी को महज 3 सीटें ही मिली थीं. यही वक्त था, जब चुनाव नतीजों के दो दिन बाद ही लालू यादव ‘गायब’ हो गए थे. वे इतने ‘सदमे’ में थे कि एक महीने से अधिक वक्त तक वे मीडिया की सुर्खियों से दूर रहे. मीडियावालों से लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भी उनके प्रवास का पता नहीं चल पा रहा था.
रामकृपाल यादव को पता था- कहां हैं लालू
हालांकि उनके करीबी रहे दो लोगों में से एक पटना के एक पत्रकार और तब लालू यादव के ‘हनुमान’ कहे जाने वाले रामकृपाल यादव को ये जरूर पता था कि वे कहां हैं? ये दोनों भी लालू यादव से सामने आने के लिए कई बार आग्रह कर चुके थे, लेकिन वह नहीं मान रहे थे. लालू के करीबी रहे पत्रकार के अनुसार ऐसा इसलिए था कि आरजेडी अध्यक्ष को इतनी बुरी हार पर यकीन ही नहीं हो पा रहा था. वह गहरे सदमे में थे और राजनीति को नए सिरे से पढ़ने की जद्दोजहद कर रहे थे. वह मीडिया के सामने क्या कहते, इसको लेकर भी असमंजस की स्थिति थी.
राबड़ी ने फिर निकाला रास्ता
हालांकि तब लालू यादव की पत्नी और बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी के कहने पर लालू के करीबी पत्रकार और रामकृपाल यादव ने दिल्ली का दौरा किया और लालू यादव से मिले. इन दोनों ने मिलकर लालू यादव का हौसला बढ़ाया और उन्हें सामने लेकर आए. जाहिर है लालू प्रसाद यादव जैसे नेता के लिए इस तरह का ‘अज्ञातवास’ हैरान करने वाला था. यह उन नेताओं के लिए भी अचरज भरा था और बिहार की जनता के लिए भी. इसके पीछे कारण यही है कि आज भी बिहार में अगर सबसे अधिक जनाधार वाले कोई नेता हैं, तो वह लालू यादव ही हैं.
Input : News18