पटना । करीब 40 साल बाद पटना राजेंद्र नगर के वोटर सुशील मोदी से मिलने उनके निजी आवास पर पहुंचे। 15 साल विपक्ष और उतने ही साल सत्ता पक्ष में बैठनेवाले सुशील मोदी 30 वर्षों से इस इलाके के सदन में प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। उनके राजनीतिक जीवन में ऐसा पहली बार हुआ है जब इतनी बडी संख्या में वोटर उनके घर पहुंचा हो और वो भी पूरे जोश और जुनून के साथ। रविवार को राजेंद्र नगर स्थित सुशील मोदी के घर का घेराव किया गया है। आक्रोशित भीड़ नारे लगा रही है। वही घर जहां से जल-जमाव के तीसरे दिन एसडीआरएफ की टीम और जिलाधिकारी उनका रेस्क्यू करने पहुंचते हैं और उन्हें सुरक्षित ठिकाने जो कि उनका सरकारी आवास होता है, पहुंचाया जाता है।
पटना में जल जमाव के 15 दिन से ज्यादा हो चुके हैं। परेशानी कई जगहों पर अब भी है। खासकर बाइपास, दानापुर, राजेंद्रनगर, बहादुरपुर, मुसल्लाहपुर, सैदपुर आदि के लोग। सरकारी राहत कार्य संतोषजनक नहीं रहा। सत्ताधारी लोग सड़कों पर नहीं निकले। पानी कम होने के बाद अब बीमारी फैलने की आशंका से लोग डरे हुए हैं। दवाओं का छिड़काव रामभरोसे चल रहा है। लोगों का सब्र शायद जवाब दे गया तो वे विरोध प्रदर्शन पर उतर आए।
मुमकिन है विरोध प्रदर्शन स्वतः स्फूर्त न होकर राजीनीतिक हो। पोलिटिकल पार्टी प्रायोजित हो। इससे इंकार नहीं है। लेकिन तब इस सत्य से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि लोग परेशानहाल हैं। सरकार शायद चैन से न हो लेकिन इतनी बेचैन भी नहीं है कि पब्लिक को यह लगे कि शासन उसकी बहुत फिक्र कर रही है। परिणाम इस असंतोष और जनाक्रोश में झलक रहा है।
लोग अब तक दोषी अधिकारियों के दंडित न किए जाने से यह मान बैठे हैं कि इस पर कुछ होना जाना नहीं है और मामले की लीपापोती की कोशिश की जा रही है। लोगों को मुआवजे की रकम मिलने या कर में राहत की उम्मीद भी धुंधली नजर आ रही है। यह पीड़ा डिप्टी सीएम के आवास के बाहर मुर्दाबाद के नारों में व्यक्त हो रही है।
जल-जमाव के दौरान राहत कार्यों में सुपर एक्टिव रहे जाप अध्यक्ष पूर्व सांसद पप्पू यादव तो दोषी अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमा चलाने, मुख्यमंत्री के इस्तीफा देने, सीवेज सफाई पर हुए अब तक खर्च रकम पर श्वेत पत्र जारी करने, संपूर्ण मामले की हाईकोर्ट के न्यायाधीश की निगरानी में जांच करने की मांग की है। साथ ही उन्होंने नागरिकों के बिजली बिल माफ़ करने, निगम कर माफ़ करने और मुआवजा देने की मांग की है।
आज के विरोध से यह तय है कि जल जमाव का मामला आसानी से शांत होने वाला नहीं है। यह सियासत का मुद्दा बन चुका है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इससे पीड़ितों को कुछ लाभ मिल पाता है या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।