सहरसा । आज 29 अगस्त है । यानी खेल दिवस । मेजर ध्यानचंद के जन्म दिवस का दिन । आज सारा देश इन्हे याद करने में मगन है । लेकिन हमें आज ही के दिन शहीद हुए अपने 5 वीर सपूतों को भी नहीं भूलना चाहिये । आज के ही दिन ठीक 80 साल पहले । यानी 29 अगस्त 1942 को । अंग्रेज सरकार की बंदूकों ने सहरसा के 5 वीर नवयुवकों का सीना छलनी कर दिया था । आज का दिन उन्हे भी याद करने का है ।
बात 29 अगस्त 1942 की है । अगस्त क्रांति की लहर सहरसा में भी फैल चूकी थी । आज़ादी के दिवानों ने बनगाँव थाना और बरियाही कोठी पर कब्जा कर लिया था । सहरसा का पूरा नियंत्रण अंगरेज सरकार के हाथों से निकलकर क्रांतिकारियों के हाथों में आ गया था ।
इस प्रतिरोध के दमन के लिय भागलपुर से फौज की एक टुकड़ी सहरसा भेजी गई । लेकिन क्रांतिकारियों को जब इसकी खबर मिली तो उन्होंने फौज से बंदूक छिनने का ही प्लान बना लिया । करीब 20 हजार की भीड़ भारत माता की जय और अंग्रेज भारत छोड़ो को नारे के साथ सहरसा स्टेशन पर जुट गई । अंग्रेज सिपाही भीड़ को देखकर डर गए । इस डर और हड़बड़ी में उन्होंने हवाई फायरिंग शुरू कर दिया ।
लेकिन फायरिंग के आवाज ने क्रांतिकारियों के जोश को और बढ़ दिया और वह लोग पूरे जुनून के संग अंगरेज सिपाहियों से बंदूक छीनने के लिये आगे बढ़ गए । भीड़ बढ़ता देख अंगरेजो ने फायरिंग शुरू कर दी जिसमें सहरसा के 5 नवयुवक शहीद हो गए । ये नवयुवक थे बनगांव के पुलकित कामत और हरिकान्त झा, गढ़िया के कलेसर मण्डल, चैनपुर के भोला ठाकुर, और नरियार के केदारनाथ तिवारी । उस समय पुलकित कामत की उम्र 18 साल, हरिकान्त झा की उम्र 16 साल, कालेश्वर मण्डल की उम्र 22 साल, भोला ठाकुर की उम्र 29 साल आ केदारनाथ तिवारी की उम्र 31 साल थी । इतने कम उम्र में शहीद हुए इन शहीदों को आज सहरसा भूल चूका है । न ही सरकार का ध्यान इस ओर है न ही किसी संस्था का । आज जब देश आजादी का 75वां साल मना रहा है ऐसे में जरुरूत है इन शहीदों से अपने नौनिहालों को परिचय करवाने की ताकि भविष्य अपने भूत पर गर्व कर सकें ।