सरकारी स्कूलों की गिरती व्यवस्था पर हाईकोर्ट एक बार फिर तल्ख हुआ है । नेता अफसरों की क्लास लगाते हुए उन्होने कहा कि यह व्यवस्था तभी सुधरेगी जब अफसर अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना शुरू करें ।
हाईकोर्ट ने ग़ुरुवार को कहा था कि राज्य में शिक्षा की बेहद खराब स्थिति है। ऐसा इसलिए कि तमाम अफसर अपने बच्चों को बाहर पढ़ाते हैं। शिक्षा व्यवस्था तभी सुधरेगी जब अफसरों को बाध्य किया जाए कि उनके बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ेंगे। अदालत की टिप्पणी पर राज्य के मंत्रियों की राय बंटी दिखी। कुछ कोर्ट की टिप्पणी के साथ तो कुछ का कहना था कि निजी स्कूल में पढ़ाना मात्र स्टेटस सिम्बल है। लेकिन हम किसी को बाध्य नहीं कर सकते कि वह अपने बच्चे को कहां पढ़ाए। आज भी बिहार के 81 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं।
केरल जैसे राज्य में 38 प्रतिशत बच्चे ही सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। सभी बच्चे एक जैसी शिक्षा पाएं इसके लिए समग्र नीति बनानी पड़ेगी। हां, अफसरों ने अदालत की टिप्पणी से जुड़े सवाल पर लंबी चुप्पी साध ली।
सभी बच्चों को एक जैसी शिक्षा पर मंत्री सहमत, अफसरों ने कोर्ट की टिप्पणी पर साधी चुप्पी
शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा ने कहा कि पिताजी सांसद थे। मैं गांव के स्कूल में पढ़ा। बच्चे भी सरकारी स्कूलों में ही पढ़े हैं। कुछ शिक्षकों में कमी हो सकती है लेकिन यह भ्रांति है कि सरकारी स्कूलों में अच्छी पढ़ाई नहीं होती।
सीएम के सलाहकार बोले
परिवहन मंत्री संतोष कुमार निराला ने कहा कि हाई कोर्ट की टिप्पणी सही है। सबको समान शिक्षा मिले, इसका मैं भी पक्षधर रहा हूं। मेरी तो शिक्षा सरकारी स्कूलों में ही हुई। मेरे तीनों बच्चे भी सरकारी स्कूलों और कालेजों में पढ़े हैं।
आरटीई के जमाने में कौन कहां पढ़ेगा, मजबूर नहीं कर सकते
समाज कल्याण मंत्री राम सेवक सिंह ने कहा कि पटना हाई कोर्ट का यह फैसला स्वागत योग्य है। अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तो इनका माहौल सुधारेगा। लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं है।
सहकारिता मंत्री राणा रणधीर ने कहा कि मेरी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल में हुई है। बच्चे निजी स्कूलों में पढ़े हैं। हां यह सही है कि अफसरों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें तो वहां की स्थिति काफी अच्छी हो जाएगी।
सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार ने कहा कि मैंने जिला स्कूल से मैट्रिक की है। प्राईवेट स्कूलों में पढ़ने से किसी को रोका तो नहीं जा सकता है। अफसर के बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ना चाहिए या नहीं, यह तो विमर्श का विषय है।
नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा ने कहा कि हमारा अपना स्कूल है जिससे बच्चों ने पढ़ाई की है, पर हम सरकारी स्कूल से पढ़े हंै। बच्चों सरकारी स्कूल में पढ़ाना ही चाहिए। वहां पढ़ाना गुनाह थोड़े है। सरकारी स्कूलों में अच्छे टीचर तलाशने में सरकार जोर-शोर से लगी है।
योजना एवं विकास मंत्री महेश्वर हजारी ने कहा कि हमारे बच्चे एनआईटी और एमबीबीएस किए हैं। परिवार के लोग सरकारी स्कूल में पढ़े हैं। यह आदर्श स्थिति है। हम सरकारी स्कूल में ही पढ़ कर यहां तक पहुंचे हैं।
लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री विनोद नारायण झा ने कहा कि सभी अधिकारियों के बच्चे सरकारी संस्थानों में पढ़ें यह आदर्श विचार है। बच्चों को कहां और कैसी शिक्षा दिलानी है यह सरकार नहीं तय कर सकती। इसके लिए सामाजिक माहौल बनाना होगा।
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा-सभी के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें यह अच्छी बात है। सरकारी स्कूलों में पढ़े लोग, सरकार और प्रशासन में बड़े पदों पर काम कर रहे हैं। प्राइवेट स्कूल से पढ़ाई करने वालों से कम नहीं हैं।
पंचायती राज मंत्री कपिलदेव कामत ने कहा कि हमारे दोनों बच्चे टीचर हैं। उनकी पढ़ाई सरकारी स्कूल से हुई है। यह सही है कि प्राइवेट स्कूल या ट्यूशन पढ़ने से पढ़ाई में थोड़ा अंतर आता है पर सच्चाई यह है कि पढ़ने वाले बच्चा कहीं से पढ़ कर आगे बढ़ जाता है।
सीएम के सलाहकार अंजनी कुमार सिंह ने कहा कि मैंने समस्तीपुर के विद्यापति हाई स्कूल से पढ़ाई पूरी की। शिक्षा के अधिकार के जमाने में किसी को भी इस बात के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है कि उसे कहां पढ़ना है? यह तो अभिभावक के विवेक के ऊपर है कि वह अपने बच्चों तो कहां से पढ़ाता है।