2017 में सहरसा के तात्कालिक डीएम रह चुके विनोद सिंह गुंजियाल ने कोसी के पानी में जल सत्याग्रह कर रहे लोगों को भरोसा दिलाया था कि जल्द ही उनके बुरे दिन खत्म होने जा रहे हैं । जल्द ही कोसी नदी पर पुल बनेगा जो कोसीवासियों को खगड़िया, बेगूसराय, समस्तीपुर, और दरभंगा से जोड़ने में मील का पत्थर साबित होगा ।
यह सहरसा जिले के पहाड़पुर स्थित पूर्वी कोसी तटबंध से कठडूमर घाट, आगरदह होते हुए सहरबन्नी तक पुल व एप्रोच पथ बनना था। 712 करोड़ की लागत से बनने वाले पुल व सड़क निर्माण के लिए डीएम विनोद सिंह गुंजियाल के निर्देश पर पुल निर्माण निगम ने सर्वे का काम पूरा कर लिया था लेकिन योजना आज तक धरातल पर नहीं उतर सकी । अभी भी यहाँ के लोग चचरी पुल का ही सहारा लेकर अपने और अपने परिवार को मुसीबत में डालकर कोसी नदी पार करते हैं ।
बताया गया था कि कठडूमर घाट पर 1800 मीटर का पुल व आगरदह घाट पर 800 मीटर का पुल बनेगा। दोनों पुल पर 336 करोड़ की लागत आने का अनुमान लगाया गया था। इसके अलावा पहाड़पुर से सहरबन्नी तक 11 किलोमीटर एप्रोच पथ बनाने में 376 करोड़ 90 लाख खर्च आने का अनुमान लगाया गया था । लेकिन योजना कागज पर ही बनी रह गई ।
आज तक इन गांव के लोगों की जिदगी चचरी पुल के सहारे ही कट रही है । जबकि कइ वर्षों से घोषनाओं की फाइल बिहार सरकार के दफ्तर में दबी हुई है । स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से प्रतिवर्ष चचरी पुल का निर्माण कराया जाता है। गांव के अगल-बगल के कई गांवों के 50 हजार की आबादी इसी चचरी पुल को पार कर प्रखंड मुख्यालय, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, थाना, हाट बाजार जाती है। इतना ही नहीं बरसात के शुरूआती दिनों में ही इस पथ की स्थिति नारकीय हो जाती है। अन्य जगहों पर भी आवागमन का सहारा चचरी पुल ही बना हुआ है। लेकिन सरकार कान में तेल डालकर सो रही है ।
बता दें कि बीते 19 फरवरी 2017 को सहरसा जिले के सलखुआ प्रखंड अंतर्गत डेंगराही घाट पर पुल बनाने की मांग को लेकर एक व्यक्ति द्वारा आमरण अनशन की शुरूआत हुई । उसके बाद प्रतिदिन लोग इस आंदोलन से जुडते गए और देखते ही देखते पुरा गाँव अनशन में शामिल हो गया । सबसे बड़ी बात तो ये रही कि महिला अनशनकारियों की संख्या पुरूष से ज्यादा थी । आंदोलन असरदार रहा और पुरे फरकिया के लोग इससे जुड़ते चले गए । मीडिया में बात आई तो सरकार के नुमाइंदे आंदोलन स्थल पर दौरे-दौरे आएं और पुल का सब्जबाग दिखाकर आंदोलन को खत्म करवाया ।
लेकिन नतीजा वही ढ़ाक का तीन पात रहा । आज भी लोग जान हथेली पर रखकर इस चचरी पुल से आवागमन करते हैं । हमारे संवाददाता ने वहाँ के स्थानीय लोगों से इस बाबत बात की तो उनका दर्द छलका । ग्रामीणों का कहना है कि यह पुल बस चुनावी वादा बनकर रह गया है । नेता लोग आते हैं और वादे करके चले जाते हैं, लेकिन हमलोगों के दुख को कोई नही समझता ।
राहुल कुमार यादव की रिपोर्ट