क्या आप जानते हैं कि भारतीय मूल के एक शख़्स ने पिछले रूसी चुनावों के दौरान जीत हासिल की है?मिलिए अभय कुमार सिंह से जो पटना, बिहार के रहने वाले हैं और कुर्स्क नाम के रूसी प्रांत की सरकार में डेप्यूतात हैं.रूस में डेप्यूतात का वही मतलब है जो किसी भारतीय राज्य में विधायक या एमएलए का है.
ख़ास बात ये भी है कि अभय कुमार सिंह ने व्लादीमिर पुतिन की ‘यूनाइटेड रशा’ पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता है.पटना में जन्मे अभय सिंह के मुताबिक़, “मैं राष्ट्रपति पुतिन से बहुत प्रभावित रहा और राजनीति में प्रवेश करने का फ़ैसला लिया.”मॉस्को के महँगे होटल में चाय पीते हुए उन्होंने कहा, “भारतीय या अंतरराष्ट्रीय मीडिया के साथ ये मेरा पहला इंटरव्यू है और ख़ुशी है कि बातचीत बीबीसी हिन्दी से हुई.”
दरअसल, ‘यूनाइटेड रशा’ रूस की सत्ताधारी पार्टी है जिसने हाल के आम चुनावों में देश की संसद (दूमा) में 75 फ़ीसदी सांसद भेजे हैं, पिछले 18 वर्षों से पुतिन सत्ता में हैं. हालाँकि पुतिन ने 2018 का चुनाव बतौर निर्दलीय उम्मीदवार लड़ कर जीता लेकिन पार्टी का पूरा समर्थन उनके पीछे रहा है. अभय ने इस चुनाव के कुछ महीने पहले अक्तूबर, 2017 में व्लादिमीर पुतिन की पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर कुर्स्क विधानसभा का चुनाव जीत लिया था.
उन्होंने बताया, “मेरा जन्म पटना में हुआ और मैंने लोयोला स्कूल से पढ़ाई की. 1991 में मैं कुछ दोस्तों के साथ मेडिकल की पढ़ाई करने रूस आया था.”अभय के अनुसार ‘काफ़ी मेहनत से पढ़ाई पूरी कर’ वे पटना वापस लौटे और प्रैक्टिस करने के लिए रजिस्ट्रेशन भी करा लिया.वे अपने निजी या पारिवारिक जीवन के बारे में बात नहीं करना चाहते बस इतना ही कहते हैं कि बिहार से उनका रिश्ता बना हुआ है.”लेकिन लगता है कि ऊपर वाले ने मेरा करियर रूस में ही लिखा था. मैं भारत से वापस रूस आ गया कुछ लोगों के साथ मिल कर दवा का बिज़नेस शुरू किया.”
रूस में कैसे की शुरुआत?
उन्हें याद है कि “शुरुआत में बिज़नेस करने में खासी मुश्किल होती थी क्योंकि मैं गोरा भी नहीं था, लेकिन हमने भी तय कर रखा था और कड़ी मेहनत के साथ अड़े रहेंगे.” जैसे-जैसे अभय के पैर रूस में जमते गए व्यापार में भी बढ़ोत्तरी हुई. फार्मा के बाद अभय ने रियल एस्टेट में हाथ आज़माया और उनके मुताबिक़ “आज हमारे पास कुछ शॉपिंग मॉल भी हैं.” रूसी राष्ट्रपति पुतिन से प्रभावित अभय को इस बात पर ‘गर्व है कि भारतीय होने के बावजूद वे रूस में रम गए और आज वहां पर चुनाव भी जीत चुके हैं.” उन्होंने बताया कि आज भी कोशिश रहती है कि जब समय मिले तो बिहार ज़रूर आएं क्योंकि ‘सभी मित्र और रिश्तेदार पटना में ही हैं.”