सरकार के हरेक दावे एक-एक करके फैल होते नजर आ रहे हैं । मजदूर ऑंखों में पानी भरकर स्टेशन से लौट जा रहे हैं । पुलिस पैदल चलने वाले पर डंडा बरसा रही है इसलिये लोग पटरियों के सहारे चल रहे हैं और मार खा रहे हैं । कुछ लोग मौत के मुँह में घुसकर आ भी जा रहे हैं तो व्यवस्था के आगे दम तोड़ दे रहे हैं ।
ऐसे में सवाल उठता है कि कुछ माह पहले लाकडाउन लगने के तुरंत बाद स्पाइस जेट ने मोदी सरकार और बिहार सरकार को प्रस्ताव दिया था कि अगर हमें कहा जाय तो हम मजदूरों को पटना तक पहुंचा सकते हैं ।
विमानन सेवा प्रदाता कंपनी स्पाइसजेट ने सरकार से 28 मार्च को ही कहा था कि अगर वह मंजूरी दे तो लॉकडाउन में दिल्ली तथा मुंबई से लौटने की इच्छा रखने वाले मजदूरों को वह बिहार छोड़ सकती है। लेकिन सरकार ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया।
स्पाइसजेट ने कोरोना वायरस के सामुदायिक फैलाव को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन के दौरान दिल्ली और मुंबई में काम करने वाले प्रवासियों को विशेष तौर पर बिहार से संबंध रखने वाले श्रमिकों को पटना पहुंचाने में मदद करने की पेशकश की थी। कंपनी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अजय सिंह ने कहा था कि यदि सरकार हां करती है तो वह इस काम के लिए अपने विमान और चालक दल की सेवाएं दे सकते हैं। लेकिन सरकार ने इनके प्रस्ताव को ना केवल ठुकराया बल्कि इस पर जवाब देना भी उचित नहीं समझा।
सरकार क्यों उचित समझेगी? सौ रुपए की दिहाड़ी कमाने वाला एक मामूली मजदूर विमान से अपने प्रदेश लौटेगा तो सरकार को अपने पालने में झूला झूलाने वाले बड़े उद्योगतियों की क्या इज्जत रह जाएगी? लॉकडाउन के कारण सारे कल-कारखाने और कंपनियां बंद होने से बिहारी मजदूरों के समक्ष बड़ी ही विकट स्थिति उत्पन्न हो गई है। उनके पास न रहने के लिए जगह है और न खाने के लिए पैसे। बिहार लौटने के लिए उनके पास साधन भी नहीं है, इसलिए कई लोग पैदल ही अपने प्रदेश बिहार लौटने को मजबूर हैं।
सरकार ने लॉक डाउन के बीते 50 दिनों में खूब मथा पेंची कर अब ट्रेनों की शुरुआत की है। सरकार का यह दावा है कि मजदूरों के रेल का किराया राज्य सरकारें और रेलवे दोनों एक साथ मिलकर उठा रही है, लेकिन ट्रेनों में बैठे लोग जब अपने टिकट मूल्य की तस्वीरें साझा कर रहे है तब स्थिति दूसरे पाले में नजर आने लग रही है।
ऐसा ट्रेन में बैठे मजदूर और उनकी खबरे बता रही है कि उनसे ट्रेन की टिकट से अधिक लागत मूल्य वसूला गया है। गुजरात में एक ऐसा भी मामला सामने आया जहां टिकट के पैसे ना होने पर सैकड़ों मजदूरों को ट्रेन में नहीं चढ़ने दिया गया। ख़ैर, रोजी-रोटी के लिए अपने घरों से दूर रहने वाले हजारों मजदूर लॉकडाउन होने के बाद अपने-अपने घरों के लिए रवाना हो चुके हैं. हाथों में थैला है और आंखों में उम्मीद कि जिंदगी का यह इम्तिहान भी वे किसी तरह से निकाल ही लेंगे.