आज की दुनिया में लोग इतने व्यस्त हो चुके हैं उन्हें अपनी जिंदगी के अलावा किसी और के लिए समय ही नहीं है, यहां तक कि अपने मां-बाप के लिए भी नहीं । जाने यह सिखाया गया है मुंह से बढ़कर कोई धन नहीं वही हम इस दुनिया की होड़ में पैसा कमाने में इस कदर लग जाते हैं की हमें किसी चीज की पड़वाह नहीं होती।
लेकिन इस कठोर दुनिया में अभी भी कुछ ऐसे लोग हैं जिनके लिए उनका परिवार और उनके मां-बाप के सब कुछ हैं उन्हीं लोगों के बीच से निकला एक 11 साल का बच्चा जिसने अपने घायल पिता और एक आंख से दिव्यांग मां को ठेले पर बिठाकर 550 किलोमीटर का सफर पूरा कर लिया । वह बच्चा वाराणसी से अररिया जिले के जोकीहाट ठेले को खींचता हुआ 9 दिन का सफर पूरा करते हुए आखिरकार अपने गांव बहुत ही गया ।
जब उस बच्चे ने यह ठान लिया कि वह अपने मां बाप को अपने गांव ले जाएगा और जब वह निकल पड़ा । लोगों ने उसे देखा उसे सराहा उसके हौसले की तारीफ की उसके जज्बे को सलाम किया और उसे श्रवण कुमार का नाम तक दे दिया । मोहम्मद तबारक ने बताया कि उनके पिता मोहम्मद इसराफिल बनारस में ठेला चलाने के साथ मजदूरी भी करते थे। मजदूरी के दौरान पैर पर पत्थर गिर गया जिसकी वजह से उनका पैर चोटिल हो गया और काम करने से वे असमर्थ हो गए।
ऐसे में अपने बीमार पति को देखने के लिए तबारक की मां बेचैन थीं। तो उस बच्चे ने सबसे पहले अपनी मां को ट्रेन से वाराणसी ले गया आजा वे अपने पिता से मिला तो उसने अपने पिता को घायल देखा और लॉक डाउन के कारण वह खाने तक को मुहाल हो चुके थे फिर क्या तबारक अपने मां बाप की यह बुरी हालत देखी नहीं गई और वो ठेले पर अपने मां-बाप को बिठाकर निकल पड़ा आपने गांव की ओर । यह रास्ता इतना आसान नहीं था कई रातें इन्होंने पेट्रोल पंप पर गुजारी कई रातें भूखा सोना पड़ा तो कई रातें लोग कुछ खाने को दे देते थे इतनी कठिनाइयों के बावजूद वह लड़का रुका नहीं और अपने हौसले के साथ बढ़ता रहा ।
तबारक जब अपने गांव जोकीहाट पहुंचा तो उसे परिवार सहित वही के स्कूल में क्वॉरेंटाइन कर दिया गया और जब यह बात वहां के विधायक को पता चले तो उन्होंने तबारक को पांच हजार रुपये और अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया। विधायक जी ने यह भी कहा कि हमें गर्व है ऐसे बच्चों पर जो अपने मां-बाप के लिए कितनी भी कठिनाइयों को पार करने की हिम्मत रखते हैं उन्होंने तबारक के हौसले की भी तारीफ की वह बच्चा अभी कक्षा 2 में बेचारा पढ़ना तो चाहता है मगर गरीबी का मारा है ग्रामीणों ने यह इच्छा जताई है कि तबारक की पढ़ाई का खर्चा बिहार सरकार उठाएं ।