जिसकें हौसलों में उड़ान होती है वो सपने देखने से नहीं डरते । जी हाँ हम बात कर रहे हैं महिषी सहरसा के उस पतले कद के इंसान की जिसके इरादे फौलाद से मजबूत हैं । जिन्होंने गरीबी में जीकर भी सपना देखना नहीं छोड़ा और आज मिथिला की नंबर 1 कैब सर्विस का सीईओ बन गया ।
मैट्रिक में थर्ड डिवीजन की वजह से नहीं हो पाया आईटीआई में दाखिला
मैट्रिक थर्ड डिवीजन दिलखुश कुमार से सीईओ एंड फाउंडर दिलखुश कुमार का सफर आसान नहीं था। मैट्रिक के बाद उनके पिता चाहते थे कि वह आईटीआई करके कोई सरकारी नौकरी करे। आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से आईटीआई के लिए पैसे इकट्ठा नहीं हो पाए। दिलखुश बड़े घमंड से कहते हैं
घर जाने के लिये नहीं मिलती थी बस तो शुरू कर दी टैक्सी सर्विस
दिलखुश बताते हैं कि आर्या गो की शुरुआत उन्होंने 2016 में की परंतु इस प्रोजेक्ट पर काम बहुत वर्षों से चल रहा था। इस बीच दिलखुश ने ड्राइवर एवं कंस्ट्रक्शन साइट पर काम कर अपनी कंपनी के शुरुआती निवेश के लिए पांच लाख रुपयों का इंतजाम किया।
स्टेशन पर उतरने के बाद गांव जाने के लिए गाड़ी ना मिलना, स्टेशन पर रात गुजारना, प्राइवेट गाड़ी वालों का मनमाना दाम वसूलना, दिन में तो फिर भी प्राइवेट टैक्सी वाले मिल जाते हैं पर रात में बड़ी मुश्किल होती है – इन सभी समस्याओं को देखते हुए दिलखुश कुमार ने ऑनलाइन टैक्सी सर्विस की शुरुआत की।
एक ड्राइवर का बेटा कैसे इतना बड़ा काम कर सकता है इस बात से हमेशा समाज के बीच उनका मजाक उड़ता था । लेकिन समाज में मिलने वाले ताने व फिरकी को नजरअंदाज कर दिलखुश लगातार अपने प्रोजेक्ट पर काम करता रहा। नतीजतन दिलखुश के प्रोजेक्ट को बिहार सरकार ने हाथों हाथ लिया। इसके बाद बिहार में कोसी के इलाके से एक कैब की शुरुआत आर्या गो कैब के रूप में हो गयी। धीरे-धीरे कैब का दायरा बढ़ता गया। वर्तमान में यह कैब सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, दरभंगा, मधुबनी में अपनी सेवा दे रहा है। फिलवक्त सौ से अधिक गाड़ियां व कॉल सेंटर के जरिये दो सौ के करीब प्रोफेशनल कंपनियों से जुड़कर अपनी जीविका चला रहे हैं।
जब आईफोन के वजह से इंटरव्यू नहीं हो पाया था क्लियर
आज मंगलवार को आइ फोन 11 मिल गया। आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व सहरसा में जॉब मेला लगा था। मैं भी बेरोजगार की श्रेणी में खड़ा था़ पापा मिनी बस चलाते थे, तनख्वाह लगभग 45 सौ रुपये थी, जिसमें घर चलाना कठिन हो रहा था। ऐसे में मुझे नौकरी की जरूरत महसूस होने लगी़ मैंने भी उस मेले में भाग लिया, जहां पटना की एक कंपनी ने अपने सारे दस्तावेज जमा किये थे, उसी कंपनी के एक साहब थे। उन्होंने कहा, आपका आवेदन पटना भेज रहे हैं।
पांच अगस्त को पटना के एसपी वर्मा रोड में आ जाइयेगा। वहां इंटरव्यू होगा। वहां सफल हो गये तो 24 सौ रुपये महीने की सैलरी मिलेगी। मैं उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। कई रात ठीक से सो नहीं पाया था। बस उसी नौकरी के बारे में सोचता रहता था। लगभग एक हफ्ता इंतजार के बाद पांच तारीख आ ही गयी। सुबह 5 बजे सहरसा से पटना की ट्रेन थी, जो 11 बजे तक पटना पहुंचा देती थी। इंटरव्यू का वक्त तीन बजे का था।
दिलखुश लिखते हैं कि जिस बिल्डिंग में गया वहां मेरे जैसे 10 से 15 लोग पहले से मौजूद थे। सब बारी-बारी से अपना इंटरव्यू देकर निकल रहे थे। जब मेरी बारी आयी तो मैं भी अंदर गया। सामने तीन पुरुष और दो महिलाएं बैठी हुई थीं। प्रणाम-पाती किये तो साहब लोगों को बुझा गया कि लड़का पूरा देहाती है।
नाम-पता परिचय संपन्न होने के बाद एक साहब ने अपना फोन उठाया। फोन का लोगों मुझे दिखाते हुए बोले, इस कंपनी का नाम बताओ? दिलखुश ने बताया कि मैंने इस फोन के लोगो को पहली बार देखा था। मुझे नहीं पता था इसलिए मैंने कह दिया सर मैं नहीं जानता हूं, तब साहब का जवाब आया ये आइ फोन है और ये एप्पल कंपनी का है।
मेरी नौकरी तो नहीं लगी, वापस गांव आया और विरासत में मिली ड्राइवरी के गुण को पेशा बनाकर पिताजी के रास्ते पर ही निकल पड़ा और आज…।।साहब का आइ फोन दिखाने का स्टाइल कल तक मेरी आंखों में घूम रहा था। आज आइ फोन आ गया। अब शायद आज से साहब याद नहीं आयेंगे।