अभी-अभी एक बड़ी खबर सामने आ रही है। बताया जा रहा है की राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने बिहार की राजनीति को लेकर बड़ा बयान दिया हैं। उन्होने कहा है की बहुत जल्द बिहार में महराष्ट्र वाला इफेक्ट देखने को मिलेगा। बातचीत चल रही है। विधान सभा चुनाव से पहले राजद-जदयू में गठबंधन संभव हैं। अगर जदयू संग आती है तो राजद की ओर से स्वागत किया जाएगा।
जगदानंद सिंह के साथ RJD में चेहरा बदलने की कवायद, कम नहीं हैं चुनौतियां
राजद ने रामचंद्र पूर्वे की जगह जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपकर पार्टी का चेहरा बदलने की नई शुरुआत तो की है लेकिन अभी भी पार्टी के पास चुनौतियां कम नहीं हैं। संगठनात्मक चुनाव के जरिए राष्ट्री य जनता दल (आरजेडी) ने बिहार में अपना चेहरा बदलने की शुरुआत कर दी है। एक साल के भीतर विधानसभा के चुनाव होने हैं। जगदानंद सिंह लालू-राबड़ी के जमाने के नेता हैं। जबकि, आरजेडी का नेतृत्व नया है। आरजेडी ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित कर दिया है। पारिवारिक विवाद भी जब-तब सिर उठाते रहते हैं। ऐसे में जगदानंद के सामने नई चुनौतियों से इनकार नहीं किया जा सकता है।
लोकसभा चुनाव में हार ने राजद को बड़ा सबक दिया। अबतक पिछड़ों की राजनीति करके बिहार में डेढ़ दशक तक सत्ता में बने रहने वाली इस पार्टी ने सवर्ण जाति से आने वाले जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर चेहरा बदलने की पहल कर दी है। किंतु इसके साथ ही कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं। सबसे बड़ा संकट कोर वोट की हिफाजत का है। नई तरकीब के सहारे सवर्ण मतदाताओं को रिझाने-समझाने का सवाल बाद में है। सवाल यह भी छोटा नहीं है कि तेजस्वी यादव की जनसभाओं में जुटती रही भीड़ को वोट में तब्दील कैसे किया जाए? क्या नया नेतृत्व इस प्रयास में सफल हो सकेगा।
पहले जगदानंद को आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की पृष्ठभूमि को समझना जरूरी है। विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में जाने से पहले इन्हीं पर दांव क्यों लगाया गया? आरजेडी की 22 वर्षों की राजनीति में किसी सवर्ण को पहली बार संगठन की कमान दी गई है तो इसकी प्रमुख वजह बीजेपी-जेडीयू के वोट बैंक में सेंध लगाने की मंशा है।