इसमाद फाउंडेशन, दरभंगा की ओर से आचार्य रमानाथ झा हेरिटेज सीरीज के तहत दिनांक 9 नवंबर को एयरपोर्ट ऑथिरिटी आफ इंडिया, नयी दिल्ली के आर्थिक योजना प्रबंधक कुमार आशीष मिथिला क्षेत्र में आर्थिक विकास विषय पर प्यारे लाल स्मृति व्याख्यान देंगे।
लनामिविवि के गांधी सदन में दोपहर बाद शाम 3:00 बजे से होनेवाली इस व्याख्यान समारोह के मुख्य अतिथि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. सुरेंद्र कुमार सिंह होंगे, जबकि अध्यक्षता श्री गजानन मिश्र, पूर्व भा.प्र.से. करेंगे।
इसामद फॉउंडेशन के न्यासी सह कार्यक्रम के संयोजक संतोष कुमार ने बताया कि मूल रूप से रोसडा के रहनेवाले कुमार आशीष हैदराबाद विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की है और इंडियन स्कूल आफ बिजनेस में बतौर शोधार्थी काम किया है। भारत सरकार के सुक्ष्म, लघु और कूटिर उद्योग मंत्रालय में बतौर सहायक निदेशक रह चुके कुमार आशीष संप्रति एयरपोर्ट ऑथिरिर्टी आफ इंडिया, नयी दिल्ली के आर्थिक योजना प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं।
महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन के सीइओ श्रुतिकर झा की अध्यक्षतावाली कमेटी ने 12 माह 12 व्या्ख्यान के तहत नवंबर माह के लिए धरोहर व्यक्ति के रूप में समाज सुधारक प्यारे लाल का चयन किया है। समिति के सदस्य रमण दत्त झा ने बताया कि 1860 में दहेज के खिलाफ भोजपुर में मुंशी प्यारेलाल ने कमान संभाली थी। यह अनूठा मूवमेंट था। शाहाबाद के गोपालपुर गांव निवासी प्यारेलाल सरकारी नौकरी छोड़कर इस आंदोलन में जुट गये। उन्हें पश्चिमोत्तर प्रांत के गवर्नर सर विलियम मूर का खुला समर्थन मिला। प्यारे लाल दयानंद सरस्वती, केशवचंद सेन, राणाडे सरीखे समाज सुधारकों के समकालीन थे, पर उन्होंने उनकी तरह किसी पंथ की स्थापना नहीं की। उन्होंने ‘सदर अंजुमन ए हिंद’ नामक संगठन की स्थापना की। 1868 में अंजुमन की पहली शाखा आरा में खुली। शीघ्र ही सभी जिलों में शाखाएं फैल गयी। सदस्यों के लिए नियम बने। समृद्धों के लिए तिलक की अधिकतम राशि 125 रु. व बारात की संख्या तय की गयी। पटना से प्रकाशित अल-पंच ने इस कुरीति पर प्रहार किया। उसने लिखा कि बेटे वालों के लिए दहेज में कारू का खजाना भी कम है। बांकीपुर के चश्म-ए-इल्म ने 18 नवंबर, 1873 में 3 राजाओं व 15 लोगों के बीच इकरारनामे को प्रकाशित किया, जिसमें दहेज के खर्च को कम करने की बात थी। 1876 में दरभंगा महाराज ने प्यारेलाल को समिति का सदस्य बनाया और प्यारे लाल सौराठ सभा गये। 1877 में अंजुमन के तय मापदंडों के आईने में महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने 2,289 शादियों को परखा। इनमें 107 विवाह पंजीयन बिकौआ बिवाह माना गया। 96 लोगों (पंजीकार, दूल्हा।, पुरोहित) को सजा सुनाई गयी, जिनसे कुल 298 रुपये का दंड वसूला गया। 10 युवाओं को रिहा किया गया, जबकि 26 दूल्हे को महाराजा कोर्ट में भेज दिया गया। 23 नवंबर 1878 को तिरहुत में पहली बार बिकौआ विवाह करने के कारण किसी व्यक्ति को कारावास हुआ। इतना ही नहीं महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने तिरहुत में प्यारेलाल द्वारा वैवाहिक खर्च को नियंत्रित करने के लिए बनाये नियम को स्वीकार कर लागू कर दिया और तिरहुत का समाज उसे लोकाचार के रूप में धीरे धीरे स्वीकार करने लगा। 1909 में मैथिल महासभा की कार्यवाही में भी इसकी चर्चा मिलती है। तिरहुत की सफलता से उत्साहित प्यारे लाल को उम्मीद थी कि वो भोजपुर में भी सफल होंगे। पटना के रईसों ने कुलीनता की आड़ में आंदोलन को कमजोर कर दिया। धीरे धीरे भोजपुर के साथ साथ पूरा बिहार प्यारे लाल को भूल गया ।