ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलसचिव कर्नल निशीथ कुमार रॉय के व्यक्तिगत प्रयास से दिल्ली की हेरिटेज कनजरवेशन करनेवाली संस्था रथ (रेकाॅगनाइज अवेल ट्रान्सफार्म हेरिटेज) ने चालीस वर्षों से भी अधिक समय से क्षतिग्रस्त महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह की संगमरमर से बनी विशालतम प्रतिमा के मरम्मत का कार्य उनकी 91वीं पुण्यतिथि के अवसर पर प्रारंभ किया है। इस अवसर पर कर्नल रॉय ने कहा कि किसी भी परिसर के देखभाल की जिम्मेदारी हमारी अपनी होनी चाहिए तभी हम वास्तविक रूप से अपने विशाल इतिहास को जीवित रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी शहर की पहचान अथवा प्रतिष्ठा उसके अमूल्य धरोहरों से ही जुड़ा होता है। इसलिए युवाओं को चाहिए कि इसे संरक्षित एवं बचाने में सहयोग करें।
इस अवसर पर इसमाद के न्यासी संतोष कुमार ने कहा कि यह महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह की प्रतिमा बिहार में सबसे ऊंचे (22 फ़ीट) एकल इटालियन मार्बल से बने प्रतिमा का गौरव प्राप्त है। संरक्षण के अभाव में इस प्रतिमा को क्षतिग्रस्त किया गया । उन्होंने बताया कि इस प्रतिमा के मरम्मत का खर्च इसमाद फाउंडेशन वहन कर रहा है। आगे भी इसमाद ऐसे कार्यो के लिए सदा तत्पर रहेगा। रथ के संरक्षणकर्ता आविस्कार तिवारी ने बताया कि यह अमूल्य धरोहर इस शहर की विरासत है तथा जहाँ हमारी संस्था मुख्यतः ऐसे कार्यो के लिए ही कार्य करती है।
रथ की विशेषज्ञा आरुषि मेहरा जो कि मूर्ति तथा संगेमरमर की विशेषज्ञ भी है ने कहा कि क्षतिग्रस्त प्रतिमाओं के मरम्मती का कार्य बहुत ही शूक्ष्म और जटिल होता है, हमें यह गौरव महसूस हो रहा है कि हम भारत के ऐसे बहुमूल्य प्रतिमा को संरक्षित कर रहें है। इस अवसर पर उपस्थित महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय के पदाधिकारी चन्द्र प्रकाश ने कहा कि पूरा विश्वविधालय परिसर एक धरोहर स्थल है इस जगह का एक स्वर्णिम इतिहास है। विश्वविधालय प्रशासन का यह दायित्व है कि वे यहाँ के धरोहरों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए काम करें। उन्होंने विश्वविधालय के कुलसचिव महोदय के इस कार्य की बहुत प्रशंसा की और आगे भी इस तरह के धरोहरों को संरक्षित करने का आग्रह किया।
एक परिचय
महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह जिनका जन्म 16 जनवरी 1860 तथा मृत्यु 3 जुलाई 1929 को हुआ। यह एक मात्र दरभंगा के महाराजा ही नहीं बल्कि इंडियन सिविल सर्विस (1878-1882) के सदस्य के साथ -साथ बंगाल लेजिसलेटिव काउंसिल के सदस्य, वासिरिगल काउंसिल के सदस्य भी रहे। इन्हें केसीआईई के अलावा विश्व के कई सम्मान से सम्मानित भी किया गया। वही इन्हें 1902 में केसरेहिन्द के अलावे ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं बिहार लैंडहोल्डर्स एसोसिएशन एवं जमींदार पंचायत, भारत महामंडल, भारतीय इंडियन कमीशन के सदस्य भी रहे।