कल नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में उसने सतत विकास के लक्ष्य के मानकों पर बिहार को फिर से फिसड्डी बताया था। वह राज्यों की सूची में आखिरी पायदान पर है।
अब देखिये बिहार के अखबारों ने उस खबर को अपने पाठकों को कैसे पेश किया। यह राज्य के तीन प्रमुख अखबारों के इस मुद्दे पर कवरेज की क्लिपिंग है। अखबार का नाम नहीं लूंगा। आप समझ जाईये। दो अखबारों ने इस खबर को छुपा लेने के लिये किस तरह के सम्पादकीय करतब किये हैं, वह नजर आयेगा। एक अखबार ने तो उस रिपोर्ट में बिहार के लिये सकारात्मक पहलू भी तलाश लिये। सिर्फ एक अखबार ने अपने पहले पन्ने पर खुल कर लिखा है कि बिहार अब भी सबसे नीचे।
मिसाल के तौर पर जब मैने चेक किया तो पता चला कि बिहार सरकार के वन विभाग, कारा विभाग, पशुपालन विभाग, सहकारिता विभाग, भूमि सुधार विभाग और दूसरे कई सरकारी विभागों के बड़े बड़े विज्ञापन सिर्फ उन्हीं दोनों अखबारों में हैं जिन्होने इस खबर को करीने से छिपा लिया है। जिस अखबार ने इस खबर को साफ साफ लिखा है उसके पन्नों पर बिहार सरकार का कोई विज्ञापन नजर नहीं आ रहा। यह संयोग है या बिहार सरकार का कोई प्रयोग?
नीति आयोग के विकास के सूचकांक में बिहार सबसे नीचे है । झारखंड इससे ठीक उपर है तो केरल को पहला स्थान मिला है । केरल ने जहाँ 75 अंक लाकर सबसे पहला स्थान प्राप्त किया है वहीं बिहार को मात्र 52 अंक मिला है जो इसे फिसड्डी बनाता है । यह मुल्यांकन सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय पैमाने के प्रगति के अनुसार किया गया है ।
पुष्य मित्र के फेसबुक की दीवार का कतरन