भारत नेपाल सीमा पर चल रहे विवाद ने अब अलग रूख अख्तियार कर लिया है । दोनो देशों के बीच चल रहे तानातनी ने अब अलग-अलग मुद्दों पर आकर रूक गया है । नेपाल की सरकार अपने नीच हरकतों से बाज नहीं आने का नाम ले रही है ।
भारत-नेपाल सीमा विवाद (India-Nepal border dispute) के साथ ही दोनों देशों के बीच एक के बाद एक मुद्दे आ रहे हैं. अब नेपाल बिहार में बांध की मरम्मत के काम में अड़ंगा लगा रहा है. उसने चंपारण के उस हिस्से पर दावा किया है, जिसपर बांध बना हुआ है. विवाद भारत-नेपाल की सीमा को दिखाने वाले पिलर नंबर 345/5 और 345/7 के बीच की जमीन पर है, जो लगभग 500 मीटर में फैली है. बता दें कि यहां पर पहले से बने बांध के बारे में नेपाल का कहना है कि भारत ने उसके हिस्से पर बांध बनाया है. मरम्मत रोकने के लिए नेपाल ने रास्ते में रुकावट डाल दी है ताकि निर्माण सामग्री न पहुंचाई जा सके. इससे बिहार के निचले हिस्सों में बाढ़ के कारण भारी तबाही मच सकती है.
बिहार और नेपाल के बीच लगभग 700 किलोमीटर लंबा इंटरनेशनल बॉर्डर है. इसमें गंडक नदी के बैराज पर 36 द्वार बने हैं. इसमें से 18 द्वार नेपाल में आते हैं, जबकि बाकी 18 भारत में पड़ते हैं. हर साल मॉनसून से पहले इन बांधों की मरम्मत होती है. इस बार भी हर साल की तरह भारत ने अपने हिस्से में सुधार कार्य करवा डाला लेकिन नेपाल के हिस्से में मरम्मत नहीं हो पा रही है क्योंकि नेपाल ने उस जगह पर रुकावट डाल दी है, जहां बांध की मरम्मत के लिए सामान रखा हुआ है.
लाल बकेया नदी के गंडर डैम में होने वाले मरम्मत कार्य को चलने की भी अनुमति नहीं दे रहे हैं. मालूम हो कि ये एक नो मेन्स लैंड है. इसके अलावा कई दूसरी जगहों पर भी नदी के प्रबंधन के काम में नेपाल रोड़ा अटका रहा है. वैसे मॉनसून में बाढ़ को लेकर पहले भी दोनों देशों के बीच थोड़ी किचकिच होती आई है लेकिन मरम्मत का काम रोकने जैसा कदम पहली ही बार लिया गया है.
खुद बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा ने इस बारे में ट्वीट किया. उनके मुताबिक गंडक बैराज के नेपाल में पड़ने वाले हिस्से में गेट बंद कर दिए हैं. इससे वहां जाना मुमकिन नहीं. 21 जून को ही 1.5 लाख क्यूसेक पानी गंडक नदी से निकला है. अगर पानी इसी तरह बढ़ा तो पूरे उत्तरी बिहार में पानी ही पानी हो जाएगा.
वैसे हर साल बांधों के प्रबंधन का काम क्यों करना होता है इसकी भी एक वजह है. असल में बांध मिट्टी के हैं. इनसे हर साल पानी में मिट्टी का क्षरण होता है. किस जगह कितनी मिट्टी बही, ये देखने के बाद बिहार जल संसाधन मंत्रालय तय करता है कि कहां मरम्मत करनी चाहिए और कहां नहीं. इसका एक प्रोटोकॉल बना हुआ है, जो सालों से चला आ रहा है. नेपाल ने कभी मरम्मत पर आपत्ति नहीं ली लेकिन इस बार मामला अलगग लग रहा है.
बता दें कि इससे पहले भी इनके प्रबंधन का काम भारत ही करता आया है, जिसे दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध बताया जाता रहा. साथ ही दोनों देशों के बीच 1954 में हुई कोसी संधि और 1959 में हुई गंडक संधि के तहत ऐसा किया जाता है. अब मरम्मत का काम रुकने से पूर्वी और उत्तरी चंपारण के निचले हिस्सों में बारिश बढ़ने पर तबाही का अंदेशा लगाया जा रहा है.