मैथिली साहित्य जगत में कवि कोकिल विद्यापति की अगली पंक्ति के कवि के रूप में मैथिलीपुत्र प्रदीप के नाम से विख्यात प्रभु नारायण झा का निधन शनिवार की सुबह हो गया। उनका जन्म फाल्गुन शुक्ल पंचमी तदनुसार 30 अप्रैल 1936 को तत्कालीन मनीगाछी प्रखंड (नया ताड़डीह) अंतर्गत कैथवार गांवके मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था।
अपने आरंभिक जीवन में प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षक के रूप में अपनी सेवा देते हुए मैथिली साहित्य सृजन के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने वाले मैथिली पुत्र प्रदीप ने वर्ष 1999 में दरभंगा नगर निगम की कोतवाली चौक स्थित गौरी शंकर मध्य विद्यालय से सेवानिवृत्त हुए। एक शिक्षक के रूप में नौकरी करते हुए उन्होंने मिथिला-मैथिली की जो सेवा की, वह सदैव अविस्मरणीय बना रहेगा।
मिथिला के जन-जन के कंठ में बसी अपनी कालजयी रचनाओं ‘जगदंब अहीं अवलंब हमर…’, ‘मिथिला के धिया सिया जगत जननी भेली…’, ‘तू नै बिसरिहें गे माय…’, ‘बाबा बैद्यकनाथ कहाबी…’, ‘चलू चलू बहिना हकार पुरै ले…’ आदि के लिए हमेशा जीवंत बने रहेंगे।
जानकार बताते हैं कि एक शिक्षक की नौकरी करते हुए भी मिथिला-मैथिली के विकास के लिए एक अभियानी के रूप में दिया गया उनका योगदान हमेशा चिर-स्मरणीय बना रहेगा। उन्होंने मिथिला-मैथिली के भौगोलिक एवं सामाजिक स्थिति के वास्तविक पड़ताल के लिए न सिर्फ संपूर्ण मिथिला की पद-यात्रा की, बल्कि बड़ी रेल लाइन एवं अन्य मांगों के समर्थन में होने वाले रेल रोको अभियान में इंजन पर चढ़कर क्रांति का बिगुल फूंकने वाले पहले व्यक्ति होते थे।
यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं कि आज से करीब 48 साल पहले विद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में जानकी नवमी पूजनोत्सव आयोजित किए जाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, बल्कि ‘मिथिला के धिया सिया जगत जननी भेली…’ की त्वरित रचना कर इस उत्सव को एक नया आयाम प्रदान किया।
मिथिला रत्न, सुमन साहित्य सम्मान, वैदैह सम्मान, भोगेन्द्र झा सम्मान सरीखे दर्जनों सम्मान से सम्मानित मैथिलीपुत्र प्रदीप द्वारा श्रीमद् भागवत कथा का वाचन आम मैथिल जनों के विशेष आकर्षण के केंद्र में होता था। ॠषि परंपरा के अभूतपूर्व कवि के रूप में स्थापित मैथिलीपुत्र प्रदीप का जीवन ‘सादा जीवन-उच्च विचार’ के सिद्धांत पर जीवन पर्यंत कायम रहा। जीवन के 85 बसंत देख चुके प्रदीप की विविध विषयों पर कुल 37 पुस्तकें प्रकाशित हैं। आज मिथिला-मैथिली के विकास के लिए सतत चिंतनशील रहने वाला हितचिंतक भले ही हमसे जुदा हो गया हो, लेकिन अपनी रचनाओं से मिथिला-मैथिली के मान-सम्मान के नित नये परिमाण गढ़ने वाले मैथिलीपुत्र प्रदीप अपनी रचनाओं में हमेशा जीवंत बने रहेंगे।
(प्रवीण कुमार झा, मीडिया संयोजक, विद्यापति सेवा संस्थान, दरभंगा। )