मैथिली साहित्य जगत को एक अपुरणीय क्षति हुई है । साहित्य के एक युग का अंत हो गया । मैथिली के महान गीतकार अब इस दुनिया में नहीं रहे । दरभंगा में उनका निधन हो गया है ।
अभी अभी एक बड़ी खबर दरभंगा से सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि मैथिली साहित्य के महान गीतकार मैथिली पुत्र प्रदीप का निधन हो गया है, दरभंगा के निवासी और प्रोफेसर उदय शंकर ने फेसबुक पोस्ट करके इस बात को लेकर जानकारी दी है। मैथिली पुत्र प्रदीप उन साहित्यकारों में से हैं जिनके गीत मिथिला के गांव गांव में प्रचलित है। ‘जगदम्ब अहीं अवलम्ब हमर हे माई अहां बिनु आस ककर’, ‘तों नहि बिसरिहे गे माय, तू जे बिसरमे तं दुनिया में पड़तैय बौआई’ आदि गीत के रचनाकार थे मैथिल पुत्र प्रदीप ।
मिथिला के दूसरे विद्यापति के रूप में प्रख्यात मैथिली पुत्र प्रदीप नहीं रहे। लहेरियासराय के बेलवागंज स्थित आवास पर शनिवार की सुबह 6.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। खासकर मैथिली गीतों के लिए प्रसिद्ध प्रदीप का जन्म 30 अप्रैल 1936 फागुन कृष्ण पंचमी को हुआ था। उनका पैतृक गांव दरभंगा जिले के तारडीह प्रखंड में कैथवार में है। फिलहाल वे बेलवागंज में रह रहे थे।
अपने प्रारंभिक जीवन में वे बिहार सरकार के प्रारंभिक विद्यालय में सहायक शिक्षक के रूप में सेवा देते हुए वर्ष 1999 में दरभंगा नगर के गौरी शंकर मध्य विद्यालय, कोतवाली चौक से सेवानिवृत्त हुए थे। शिक्षक के रूप में नौकरी करते हुए ही उन्होंने मैथिली की सेवा शुरू कर दी थी। मिथिला के कण-कण में समाए गीत ‘जगदंब अहिं अवलंब हमर हे माई अहां बिनु आस केकर’ ने मैथिली पुत्र को मिथिलांचल व बिहार में सदा के लिए अमर कर दिया। उन्हें मिथिला रत्न, सुमन साहित्य सम्मान, वैदेह सम्मान, मिथिला रत्न सम्मान, भोगेंद्र झा सम्मान सहित दर्जनों पुरस्कार मिल चुके थे। वे अपने पीछे अपनी चार पुत्रियों एवं एक पुत्र को छोड़ गए हैं। मैथिली पुत्र की जीवन संगिनी का निधन पूर्व में ही हो चुका है। परिजन उनके पार्थिव शरीर को लेकर कैथवार के लिए रवाना हो चुके हैं। उनके निधन की खबर मिलते ही शोक संवेदनाओं का तांता लग गया है।