सावन आते ही मिथिलांचल में विभिन्न पर्व त्योहारों का दौर शुरू हो जाता है। ऐसा ही महत्वपूर्ण पर्व है मधुश्रावणी। मधुश्रावणी पर्व मिथिलांचल के अनेक सांस्कृतिक विशिष्टाओं में से एक है। 23 जुलाई गुरुवार को मधुश्रावणी का पर्व मनाया जायेगा। पर्व को लेकर नवविवाहिता महिलाओं में उत्साह का माहौल है।
इस त्योहार को नवविवाहिता आस्था और उल्लास के साथ मनाती है। मिथिलांचल में नवविवाहिताओं द्वारा यह पर्व सुहाग की रक्षा के लिए मनाया जाता है। वैदिक काल से ही मिथिलांचल में ऐसी मान्यता है कि पवित्र सावन मास में निष्ठापूर्वक नाग देवता की पूजन करने से दम्पत्ति की जीवन की आयु लम्बी होती है। आचार्य पंडित धर्मेन्द्रनाथ मिश्र ने मधुश्रावणी व्रत एवं नाग पूजन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पन्द्रह दिनों तक चलने वाला यह पर्व पूजन टेमी के साथ विश्राम होगा।
यह पर्व नवदम्पत्तियों के लिए एक तरह से मधुमास है। इस पर्व में गौरी शंकर की पूजा तो होती ही हैं। विषहरी और नागिन की भी पूजा होती है। प्रथा है कि तीन दिनों नवविवाहिता ससुराल से आये हुए कपड़े, गहने ही पहनती है और भोजन फलाहार आदि भी वहीं से आये अन्न ग्रहण करती है। पहले और अंतिम दिन की पूजा बड़े ही विस्तार से होती है। पूजा के बाद ज्ञानी महिलाओं द्वारा कथा सुनाई जाती है। जिसमें शंकर पार्वती के चरित्र के माध्यम से पति पत्नी के बीच होने वाले नोक-झोंक, रूठना मनाना आदि की कथा सुनाई जाती है।
विवाहिता सभी सुहागिनों को अपने हाथों से खीर का प्रसाद और मेंहदी बांटती है। अंतिम दिन चार स्थानों पर नवविवाहिता को टेमी से दागी जाती है। जिससे चार पुरूषार्थ यानि चार प्रकार के फल, धर्म और काम मोक्ष की प्राप्ति होती है। जानकारी के अनुसार पूजन का शुभ समय प्रात:काल सूर्योदय से लेकर दोपहर के 3 बजकर 29 मिनट तक है। पूजा की तैयारी पूरी कर ली गयी है।