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लोक जनशक्ति पार्टी की कमान संभाल रहे चिराग पासवान बिहार चुनाव में कितनी रोशनी फैलाएंगे ये तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा, लेकिन उन्होंने नीतीश कुमार की अगुवाई वाले एनडीए का सियासी खेल जरूर बिगाड़ दिया है. एग्जिल पोल के सर्वे से यही संकेत मिल रहे हैं कि एलजेपी ने बिहार चुनाव में अकेले मैदान में उतरकर, बिहारी स्वाभिमान का ऐसा सियासी दांव चला है, जिसने नीतीश कुमार की सत्ता की कुर्सी के पाए हिला दिए हैं. हालांकि, एलजेपी अगर बीजेपी-जेडीयू के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरती तो सूबे की तस्वीर एनडीए के पक्ष में नजर आती.
एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान
इंडिया-टुडे-एक्सिस माय इंडिया एग्जिट पोल के मुताबिक बिहार की कुल 243 सीटों में से 139-161 सीटें तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को मिलती दिख रही हैं. एनडीए को बिहार में महज 69 से 91 सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है. इसके अलावा बिहार में अकेले चुनाव लड़ने वाली एलजेपी को 3 से 5 सीटों पर जीत मिलने का अनुमान है, लेकिन वोट फीसदी 7 फीसदी मिलता दिख रहा है. वहीं, दूसरी ओर महागठबंधन को 44 फीसदी और एनडीए को 39 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है.
जेडीयू के खिलाफ लड़े चिराग
मनमुताबिक सीटें न मिलने से बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग राह अपनाई. एलजेपी ने बिहार की 135 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. इनमें से ज्यादातर प्रत्याशी जेडीयू के खिलाफ चुनावी ताल ठोकते नजर आए. हालांकि, गोविदंगज, लालगंज, भागलपुर, राघोपुर, रोसड़ा और नरकटियागंज सीट जैसी सीट पर एलजेपी प्रत्याशी बीजेपी के खिलाफ भी चुनाव लड़ रहे थे.
एग्जिट पोल के मुताबिक बिहार में भले ही एलजेपी को 3 से 5 सीटें मिलती दिख रही हों, लेकिन चिराग ने दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर बीजेपी के बागी नेताओं को कैंडिडेट बनाकर नीतीश कुमार के राजनीतिक समीकरण को पूरी तरह से बिगाड़ दिया है. एलजेपी के अलग जाने से जेडीयू को सीटों पर नुकसान हुआ. पासवान उपजाति वोट एनडीए 31% और एलजेपी 30% में बंट गए. एलजेपी ने महादलितों और आर्थिक रूप से पिछड़े वोटों में भी सेंध लगाई. इन दोनों वर्गों से एलजेपी को आठ-आठ फीसदी वोट मिले. जिससे नीतीश कुमार को काफी नुकसान हुआ.
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30-40 सीटों पर एलजेपी ने पहुंचाया नुकसान
एक्सिस माय इंडिया के सीएमडी प्रदीप गुप्ता ने कहा कि बिहार चुनाव में 30 से 40 सीटों पर एलजेपी ने जेडीयू को नुकसान पहुंचाया है. साथ ही उनका कहना है कि अगर जेडीयू-एलजेपी साथ लड़ती तो बीजेपी से ज्यादा सीटें जेडीयू की होतीं. एग्जिट पोल में मिले एलजेपी के वोट शेयर को अगर एनडीए के वो साथ जोड़कर देखें तो 46 फीसदी होता है, जो कि महागठबंधन के वोट शेयर से 2 फीसदी ज्यादा होता है. विधानसभा चुनाव में दो फीसदी वोट सत्ता बनाने और बिगाड़े की ताकत रखता है.
महागठबंधन के सीएम फेस तेजस्वी यादव ने पहली कैबिनेट में ही दस लाख बेरोजगारों को सरकारी नौकरी देने के वादे से चुनावी गणित को अपने पक्ष में कर लिया. साथ ही समान काम के लिए समान वेतन के नारे ने भी तेजस्वी के प्रति आम मतदाताओं पर असर डाला. वहीं, बिहारी स्वाभिमान के नाम पर चिराग पासवान ने जिस तरह से नीतीश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला और माहौल बनाने का काम किया, उतने आक्रामक तरीके से तेजस्वी भी नीतीश पर हमले नहीं करते दिखे. हालांकि, इसका सियासी लाभ जरूर तेजस्वी के पक्ष में गया है.
बता दें कि चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान की राजनीति का शत-प्रतिशत हिस्सा केंद्र में गुजरा था और वे बिहार पर उस तरह से फोकस नहीं कर पाए थे, जिसकी महत्वाकांक्षा हर नेता को होती है. लोकसभा चुनाव 2019 के बाद एलजेपी की कमान चिराग पासवान को मिली. चिराग ने यह भांप लिया था कि बिहार की राजनीति में स्पेस है जिसको भरने की कोशिश होनी चाहिए. इसी के बाद बिहार की राजनीति को गंभीरता से लेते हुए अपनी जगह बनाने की कवायद शुरू की और राज्य के तमाम मुद्दों को उठाना शुरू किया.
एनडीए में रहते हुए चिराग पासवान ने यह रणनीति बनाई कि नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रोश को कैश करने के लिए उनके खिलाफ सवाल पूछे जाने चाहिए. फरवरी आते-आते उन्होंने बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट का कॉन्सेप्ट तैयार कर लिया, जिसमें बिहार के आम लोगों की जरूरतों को देखते हुए कई पहलुओं को शामिल किया गया. चुनाव के पहले से ही चिराग पासवान ने नीतीश सरकार की कई योजनाओं के क्रियान्वयन और अफसरशाही पर सवाल उठाने से पीछे नहीं रहे. यही नहीं जेडीयू ने समय पर चुनाव कराने की बात की तो चिराग ने चुनाव आयोग को पत्र के जरिए कोरोना संक्रमण के चलते अभी चुनाव नहीं कराने की मांग कर दी थी.
चिराग ने इसके बाद नीतीश कुमार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना सात निश्चय पर हमले और दूसरे मुद्दों पर सवाल पूछना शुरू कर दिया. चिराग ने अपने लगातार बयानों से नीतीश के खिलाफ सियासी जमीन तैयारी कर दी थी. एनडीए से अलग होने के बाद तो चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. चिराग के कई बयानों ने नीतीश कुमार को नींद उड़ा दी. जेल भेजने से लेकर 10 नवंबर के बाद नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे. यही नहीं नीतीश कुमार की वफादारी पर भी सवाल खड़े किए. इस तरह के बयान देकर वह लगातार चर्चा में रहे हैं, लेकिन जो चिराग ने जो जमीन नीतीश के खिलाफ तैयार की, उस पर तेजस्वी कब्जा जमाते नजर आ रहे हैं.
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