दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह को अनमोल जवाहरातों को संग्रह करने का बड़ा शौक था । सन 1948 में लगाए गए एक अनुमान के अनुसार उस वक्त भारत में लगभग 150 विश्वस्तर के अनमोल रत्न एवं जवाहरातों का संग्रह था। बैसे ये बात सर्वविदित है कि भारत में सबसे बेहतरीन जवाहरातों का संग्रह हैदराबाद के निजाम के पास था तथा उनके बाद दूसरा स्थान बड़ौदा के गायकवाड़ को दिया जाता है । पर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस प्रकार के विश्वस्तरीय जवाहरातों का संग्रह करने वालों में तीसरा स्थान ना तो जयपुर के राजाओ का था और ना ही ग्वालियर अथवा मैसूर के नरेशों के पास था । ये स्थान रखते थे भारत के सबसे बड़े , धनी और प्रभावशाली ज़मींदारी एस्टेट दरभंगा राज के अंतिम महाराजा कामेश्वर सिंह । सन 1950 से 1960 के दशक के सबसे अमीर और शक्तिशाली व्यक्तियों में उनका शुमार होता था।
दरभंगा राज परिवार के पास जो जवाहरात थे उसमे सबसे प्रसिद्ध हार नौलखा हार था जो कि विश्व के सबसे शानदार हारों में से एक माना जाता था। मूल रूप से यह हार मराठा बाजीराव पेशवा का था जिसे उन्होंने 9 लाख रूपये में खरीदा था। इस हार में मोती , हीरा और पन्ना जड़ा हुए थे । पेशवा के बाद आनेवाले पीढ़ियों में जो भी पेशवा बने वे उस हार में एक-एक जवाहरात जोड़ते गए जिसकी कीमत बढ़ कर तब तक 90 लाख हो गयी थी। 1857 की क्रा’न्ति के बाद नाना साहेब पेशवा इसे अपने साथ नेपाल ले गए और इस हार को नेपाल के राजा जंग वहादुर के हाथों बेच दिया । उन्हें इस हार को इसलिए बेचना पड़ा क्योकि उनको पास दान देने के लिए धन की आवयश्कता थी। उनके पास एक अन्य असाधारण ‘ शिरोमणि’ हार भी था जो 3 इंच लंबा था और जिसमे पन्ने जड़े हुए थे। इस हार में उन्होंने मुहर लगा रखा था जिसमे नाना साहेब को घुड़सवारी करते हुए दिखाया गया है ।
नाना साहेव के हारों का संग्रह दरभंगा महाराज को कैसे हाथ लगा उसकी एक रोचक और दिलचस्प कहानी है । नेपाल के राजा जं’ग बहादुर राणा के बाद ये हार धीर शमशे’र राणा के अधिकार में आ गया । 1901 मे त’ख्ता पलट विद्रो’ह के बाद शमशे’र राणा को नेपाल का प्रधान मंत्री पद त्यागकर पलायन करना पड़ा। उसके पास धन की कमी हो गयी । वह अपना हार बेचने के लिए दबाव में आ गये । उन्हें अपना हार 24 घंटे में ही बेचना था वो भी नकद में , पर इतने कम समय में इतने नकद रूप में हार खरीदने वाले दरभंगा राज के महाराजा रामेश्वर सिंह के अलावा और कौन हो सकते था। इस प्रकार यह दुर्लभ हार भी दरभंगा राज परिवार के पास आ गया