बिहार चुनाव अपने अंतिम पड़ाव है । एक दर्जन से अधिक मंत्रीयों और विधायकों की किस्मत दांव पर लगी है । चुनाव प्रचार का शोर थम चुका है लेकिन गुप-चुप तरीके से सभी वोटरों को साधने में लगे हैं । कई ऐसे विधायक भी है जो नीतीश का दामन थामकर नैया पार लगाने के फिराक में है तो कई पैराशुट कैंडिडेट पहली बार में ही चुनावी वैतरणी को पार करने का दम भर रहे हैं ।
सोनवर्षा सुरक्षित सीट अगर बात करें तो यहाँ पर रत्नेश सादा जो वर्तमान विधायक है उनका वोट बैंक लगातार पिछड़ता जा रहा है । नीतीश कुमार के नाम पर पिछले दो बार से जीत रहें विधायक जी को नीतीश कुमार का अहंकार शायद ले न डूबे । ग्रामीणों की शिकायत है कि विधायक जी जीतने के बाद एक बार भी मिलने नहीं आए हैं ।
त्रिकोणीय रहेगा मुकाबला
इस बार यहाँ पर मुकाबला त्रिकोणीय होने वाला है । जदयु ने पुन: इस बार अपने पुराने सचेतक पर ही भरोसा दिखाया है । सुत्र तो यह भी बताते हैं कि इस बार इनका टिकट कट चुका था लेकिन क्षेत्र में अतिपिछड़ा नेता न होने की वजह से थक-हारकर इन्हे ही नेता बनाना पड़ा । लोजपा ने यहाँ दो बार से प्रतिद्वंदी रही सरिता पासवान को उतारा है । सरिता पासवान 2010 में भी उपविजेता रहीं थी और 2015 में भी उन्हो पिछली बार के मुकाबले 40 प्रतिशत ज्यादा मत मिला था । रत्नेश के एंटीइंन्कम्बेसी का पूरा फायदा इन्हे मिलता दिख रहा है । वहीं कांग्रेस ने अपने पुराने खिलाड़ी तारणी ऋृषिदेव पर ही दांव लगाया है । तारणी ऋृषिदेव 2010 में कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़े थे उस समय इन्हे कुल मत दस हजार के करीब मिला था । 2015 में जब राजद और जदयू का गठबंधन हुआ तो इन्हे किनारा कर दिया गया उस समय नोटा तीसरे नंबर पर रहा था । इस बार इन्हे एमवाई समीकरण का फायदा तो मिलेगा लेकिन राह आसान नहीं होगी ।
सरिता पासवान को मिलेगा सिपैंथी वोट
सरिता पासवान के साथ तीन प्लस प्वाइंट है । पहला ये कि वो पिछले दो बार से लगातार चुनाव में खड़ी हो रही है और जनता के बीच आकर उनका सुख दूख बांट रही है । पिछले दो बार से लगातार उप विजेता रहने के कारण लोगों के बीच उनकी अच्छी पकड़ बन गई है । पिछले साल एक बिमारी की वजह से उनके पतिदेव इस दुनिया में नहीं रहे । राजनीति में सिपैंथी वोट अहम रहता है । चिराग पासवान को वैसे भी रामविलास पासवान के नाम पर वोट बरस रहे हैं उनकी रैली की भीड़ बता रही है कि मामला इस बार उनके पक्ष में जा रहा है । सरिता पासवान को वो फायदा भी इस बार मिलता दिख रहा है । तीसरा रत्नेश सादा के एंटी इन्कबेसी का फायदा सीधे-सीधे सरिता पासवान को मिलता दिख रहा है । नीतीश कुमार से भी जो युवा वोटर नाराज है उनका भी सीधा-सीधा फायदा सरिता पासवान को मिलता दिख रहा है ।
बात सोनवर्षा विधानसभा के इतिहास से
साल 2010 में जदयू और भाजपा संयुक्त रूप से चुनाव लड़ रहे थे वहीं राजद को लोजपा का साथ मिला हुआ था । कांग्रेस इस चुनाव में पहली बार अकेले चुनाव लड़ रही थी । उस समय रत्नेश सादा को 56633 मत मिला था । उस समय सरिता पासवान ने 25188 लिया था । वहीं कांग्रेस के तारणी ऋृषिदेव को सिर्फ 10432 मतों से संतोष करना पड़ा था । नोटा की एंट्री उस समय नहीं हुई थी । 2015 जदयू ने राजद के संग गठबंधन किया और पुन: रत्नेश सादा पर भरोषा जताया । इस समय रत्नेश सादा को माय समीकरण का फायदा मिला और 88789 मतों के साथ बिहार में सबसे ज्यादा मतों के अंतर से जीतने वाले प्रत्याशी बन गएं । सरिता पासवान ने उस समय पहली बार बिहार में अकेले चुनाव लड़ रहे बीजेपी के दम पर भी 35026 वोट लाने में सफल रही । नोटा ने इस बार चुनाव में एंट्री की और सोनवर्षा में तीसरे स्थान पर सभी प्रत्याशी को मात दे तीन नंबर पर आ गया । इस साल नोटा को 6449 मत मिला था बांकि के प्रत्याशी इसके नीचे ही थे ।
इस बार के चुनाव में युवाओं का रूझान प्लूरल्स के तरफ भी है । पुष्पम प्रिया के नाम पर जो वोट कटेगा वो निश्चित ही उन युवाओं का होगा जो पहले नीतीश कुमार के साथ जाते थे । क्षेत्रिय पार्टी भी इस बार थोक के भाव में कैडिडेट उतारी है लेकिन फायदा नही होने वाला है । सोनवर्षा विधानसभा में इसकी स्थिती वोटकटवा से ज्यादा कुछ नहीं होगी । हालांकि असली बात तो 10 तारीख को ही निकल कर आएंगी । फिलहाल इतना ही कह सकते हैं रत्नेश सादा की राह इस बार नहीं होगी आसान ।