भारत चाइना के बीच यु’द्ध जैसी स्थिती आ गई है । दोनो तरह से न केवल झ’ड़प हुई है बल्कि हमारे जवान भी श’हीद हुए हैं । इन श’हीद जवान में बिहार रेजि’मेंट के 13 जवान थे, जिनमें से 6 बिहार के थे । आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि कैसे बिहार रेजिमेंट की शो’र्य गाथा सेना के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखी जाती रही है ।
भारत-चीन सीमा पर तैनात की गई बिहार रेजीमेंट की अपनी अलग ही खासियत है। स’र्जिकल स्ट्रा’इक में हिस्सा लेना हो या कारगिल यु’द्ध में विजय की कहानी लिखनी हो, बिहार रेजी’मेंट की ऐसी सभी ल’ड़ाइयों में खासी भागीदारी रही है।
ऐसा नहीं है कि बिहार नाम होने से इसमें सिर्फ बिहार के लोग ही चुने जाते हैं, इस रेजी’मेंट का सिर्फ नाम ही बिहार रेजी’मेंट हैं। इस रेजी’मेंट ने इतिहास में दर्ज किए जाने वाले काम किए हैं, इसी वजह से बिहार रेजी’मेंट को भारतीय सेना का एक मज’बूत अंग माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि बिहार रेजी’मेंट के जवान ब’हादुर होते हैं और वो किसी भी स्थिति में रह पाने के लायक होते हैं इस वजह से दु’र्गम और ज’टिल परिस्थितियों में इनको तैनात किया जाता है। गलवन और इस तरह की कुछ अन्य दु’र्गम घाटी वाले इलाके में इस रेजी’मेंट के जवान तैनात हैं।
रेजि’मेंट को अपने गठन से लेकर अब तक के इतिहास में तीन ‘अशोक च’क्र’ और एक ‘महावीर च’क्र’ प्राप्त करने का गौरव हासिल है। यदि हाल के दिनों की बात करें तो इस रेजी’मेंट ने सन् 1999 के कारगिल यु’द्ध तथा 2016 में पाकिस्तानी आ’तंकियों से जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में आ’तंकियों के खि’लाफ मो’र्चा लिया था।
प्रा-णों की आ’हूति देकर करते हैं मातृभूमि की र’क्षा
‘जय बजरंगब’ली’ और ‘बिरसा मुंडा की जय’ की हुं’कार इस रेजी’मेंट का वाक्य है। इस वाक्य को कहते हुए इस रेजी’मेंट के जवान अपने में जो’श भरते हैं और दु’श्मन के दांत खट्टे कर देते हैं। अपने प्रा’णों की आ’हुति देकर मातृभूमि की रक्षा करने का बिहार रेजी’मेंट सेंटर का इतिहास रहा है। इस रेजी’मेंट ने दूसरे विश्व यु’द्ध में हिस्सा लिया था।
बिहार रेजी’मेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी पैदल सेना रेजी’मेंट में से एक है। बिहार रेजीमेंट का गठन 1941 में 11 वीं (टेरि’टोरियल) बटालियन, 19 वीं हैदराबाद रेजि’मेंट को नियमित करके और नई बटालियनों का गठन करके किया गया था।
उरी में रेजी’मेंट के 15 जांबा’जों ने दी श’हादत
बीते 18 सितंबर 2016 को जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में पाकिस्तानी सीमा से आए घु’सपैठिए आ’तंकियों से लो/हा लेते हुए इस रेजी’मेंट के 15 जांबा’जों ने अपने प्रा’णों की आ’हुति दी थी। उरी सेक्टर स्थित भारतीय सेना के कैंप पर हुए ह’मले में कुल 17 जवानों ने अपनी शहा’दत दी थी, जिनमें सर्वाधिक 15 बिहार रेजीमेंट के थे। इन 15 जांबा’जों में 6 मूलत: बिहार के थे।
करगिल यु’द्ध में लिखा इतिहास
करगिल यु’द्ध में विजय कहानी लिखने में भी बिहार रेजीमेंट के जवानों का अमूल्य योगदान रहा। जुलाई 1999 में बटालिक सेक्टर के पॉइंट 4268 और जुबर रिज पर पाकिस्तानी घुस’पैठियों ने क’ब्जा करने की कोशिश की। बिहार रेजीमेंट के जवानों ने उन्हें भी खदे’ड़ दिया था।
करगिल यु’द्ध में शही’द कैप्टन गुरजिंदर सिंह सूरी को म’र’णोपरांत महावीर च’क्र से तो मेजर मरियप्पन सरावनन को म’र’णोपरांत वीर च’क्र से सम्मानित किया गया। पटना के गांधी मैदान के पास करगिल चौक पर करगिल यु’द्ध में श’हीद 18 जांबा’जों की श’हादत की याद में स्मारक बनाया गया है।
मुंबई ह’मले में मेजर उन्नीकृष्णन श’हीद
2008 में जब मुंबई में ह’मला हुआ था तब एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ऑप’रेशन ब्लैक टोर’नांडो में श’हीद हो गए थे। मेजर संदीप बिहार रेजी’मेंट के थे, जो प्रतिनियुक्ति पर एनएसजी में गए थे। इससे पहले बंगलादेश यु’द्ध के दौरान बिहार रेजीमेंट ने पाकिस्तानी सेना से दो-दो हाथ किया था।
उस दौर में इस रेजी’मेंट के वीर सैनिकों ने गो’लियां कम पड़ गईं तो कई पाकिस्तानियों को संगी’नों से ही मा’र दिया था। उस यु’द्ध में पाकिस्तान के 96 हजार सैनिकों ने बिहार रेजी’मेंट के जांबा’जों के सामने ही सरें’डर (आ’त्मसम’र्पण) किया था, वह विश्व में ल’ड़े गए अब तक के सभी यु’द्धों में एक रिकॉर्ड है।