गोपालगंज शहर के हजियापुर मोहल्ला के महादलित बस्ती बस्ती पहुंचेंगे तो हर तरफ गंदगी और मलिन बस्ती जैसा दृश्य दिखेगा। जाहिर है इसमें कोई आना नहीं चाहेगा, लेकिन गोपालगंज की गीता कुमारी इस मोहल्ले में रोजाना दोपहर में आती है। यहां महिलाओं को सड़क के किनारे खाली पड़ी जमीन की फर्श पर बैठाती हैं।
दरअसल गीता आज वैसे महिलाओं और बच्चो के लिए किसी पथ प्रदर्शन से कम नहीं है जो महिलायें और बच्चे पैसे की तंगी की वजह से पढाई नहीं कर सके। समय के अभाव में महिलायें अपने घरेलू कामकाज में बिजी रह जाती है। तब गीता अपने छोटे से प्रयास से सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं और बच्चो के बीच शिक्षा का अलख जगा रही है। यहां गीता कुमारी रोजाना समय निकालकर महादलित समुदाय की महिलाओं के बीच में जाती है। उन्हें लिखना-पढ़ना सिखाती हैं। वे महिलाओं को साक्षर करने की मुहिम में जुटी हैं।
गीता पीएचडी कर रही हैं। वे अपने पॉकेट मनी से पैसे बचाकर इन महिलाओं की पढ़ाई पर खर्च करती हैं। पेड़ की छांव में महिलाओं की क्लास लगाती हैं। इस क्लास में वैसी महिलायें शामिल हैं जो सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर हैं। ये महिलाये निरक्षर हैं। यानी इन्हें लिखना पढना तो दूर अक्षर ज्ञान की बुनियादी जानकारी भी नहीं है। लेकिन अब सबकुछ बदलने लगा है। कभी अंगूठा छाप रही ये महिलाएं अब लिखना-पढ़ना सीख गयी हैं।
हजियापुर की रहने वाली 60 वर्षीय पाना देवी के मुताबिक वे यहां एक माह से पढ़ने आ रही हैं। जब घर के काम से वे फ्री हो जाती हैं। तब यहां दोपहर में गीता मैडम की क्लास में पढ़ने आती हैं। वे काम मजदूरी करने वाली महिला है। वे जब भी बैंक में जाती है। तब उन्हें बहुत परेशानी होती थी। वे चाहती है की वे पनिर्मला देवी, सुगंती पढ़-लिख जाएगी तो अपने बाल बच्चों को पढ़ाएंगी।
पाना देवी के अलावा अबादन बेगम, निर्मला देवी, सुगंती सहित करीब चालीस महिलायें अब अंगूठा छाप नहीं है। इन महिलाओं के मुताबिक उन्हें कम से कम इतनी जानकारी आ गयी है कि वे अपना राशन, किरासन सिग्नेचर करके उठा लेती हैं। गीता कुमारी के मुताबिक वे रिसर्च स्कॉलर है। वे यहां चालीस से ज्यादा महिलाओं को निशुल्क पढ़ाती हैं। यहां पर उन्होंने बैठने की वयवस्था की। उन्हें कॉपी, कलम और बोर्ड उपलब्ध कराया है। वे हजियापुर के मुसहर टोली में पेड़ के नीचे पढ़ाती है। ताकि ये भी कुछ सीख ले। अंगूठा छाप नहीं रहे और अपने बच्चों को भी पढाये।