कोरोना वायरस का भय, गर्मी और ट्रेन का सफर। 72 घंटे हो चुके हैं। ट्रेन में मिले पूड़ी-सब्जी के पैकेट और एक बोतल पानी से काम चलाना पड़ा। लेकिन, घर पहुंचने की खुशी ने सभी दर्द को भुला दिया। जेब में ताे पैसे थे, लेकिन दुकानें बंद थीं। जिन स्टेशनों पर ट्रेन रुकी, वहां स्टॉल पर ताले लगे थे। ये शब्द उन बिहार वासियों के हैं, जो गुरुवार शाम 5 बजे पानीपत से पटना पहुंचे। सीवान के अभय सिंह कहते हैं-ट्रेन चलने की जानकारी होने के बाद 25 मई की सुबह ही फतेहाबाद से पानीपत चल दिए थे।
40 किमी पैदल चलने के बाद ट्रक मिल गया। एक हजार रुपए लेकर 26 मई को पानीपत पहुंचा दिया। ट्रक से उतरते ही पुलिस ने उसे भगा दिया। जल्दीबाजी में खाने-पीने का सामान ट्रक में ही छूट गया। जेब में 300 रुपए थे। यदि कुछ खरीद करके खाता तो घर पहुंचने के लिए पैसे ही नहीं रहते। इसकी वजह से 48 घंटे तक बिना खाए रहे। ट्रेन में खाने को मिला तो, जिंदगी बची।
घर पहुंच जाएं…बस इसी अास में न गर्मी लगी न भूख-प्यास कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा, उस पर उमस भरी गर्मी, चलती ट्रेन में पीने के पानी की समस्या। दो घंटे लेट से खुली और रास्ते में और लेट होती गई ट्रेन। दानापुर स्टेशन पर ट्रेन से उतरने के बाद स्क्रीनिंग और बस से अपने गृह जिला जाने से पहले घंटों लाइन में खड़े-खड़े इंतजार। लाइन में भीड़ इतनी कि सोशल डिस्टेंस का कहीं नामोनिशान नहीं। दानापुर स्टेशन का सर्कुलेटिंग एरिया प्रवासियों से भरा है। दोपहर के 1 बज रहे हैं। भीड़ पांच हजार से अधिक की है।
इसके बावजूद श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आने वाले खुश हैं। खुशी है घर पहुंचने की। दिल्ली से इलाज करा कर अपनी मां लक्ष्मी के साथ लौटी दिव्यांग गुड़िया ने कहा-लॉकडाउन के कारण दिल्ली में नाहक इतने दिन रहना पड़ा। काफी कष्ट हुआ। लेकिन, अब लगता है बरबीघा स्थित अपने घर पहुंच जाएंगे। इस खुशी के आगे पीछे के सारे कष्ट भुला दिए।
बच्चों के लिए 210 में खरीदा एक लीटर दूध बेगूसराय के अमित कुमार कहते हैं- ट्रेन पकड़ने के लिए रोहतक से 30 घंटे पहले ही आ गए थे। साथ में पत्नी और बच्चे थे। सूखी रोटी और अचार खाकर घर आने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन, बच्चे दूध की जिद करने लगे। एक चाय वाले से अनुरोध किया, तो उसने 210 रुपए में एक लीटर दूध दिया।
जेब में पैसा, फिर भी नहीं मिला सामान जिंद में रहने वाले सर्वेश कुमार पानीपत से ट्रेन पकड़ने के लिए 26 मई को घर से निकले थे। 30 किमी पैदल सफर के बाद जब स्टेशन पहुंचे तो उल्टी होने लगी। दवा खाने के बाद कुछ राहत हुई। ट्रेन में केवल पूड़ी-सब्जी दी जा रही थी। जहां ट्रेन रुकती थी, वहां चाय के लिए प्लेटफार्म पर उतरते थे, लेकिन हर जगह दुकान बंद रही।