बिहार बोर्ड के इंटरमीडियट के छात्रों का एडमिशन नहीं हो रहा है। पटना यूनिवर्सिटी सहित बिहार के प्रीमियम विश्वविद्यालयों में बिहार बोर्ड से पास हुए सिर्फ 20 फीसदी छात्रों का ही एडमिशन किया जा रहा है। यह आरोप लगाया है एनडीए के उप नेता और भाजपा के एमएलसी नवल किशोर यादव ने। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र के जरिए इसे दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए तत्काल दखल देने की मांग की है
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बिहार के विश्वविद्यालयों के काम पर सवाल उठाते हुए नवल किशोर यादव ने बताया कि पूर्व में विप में उनके प्रस्ताव पर सूबे के सभी विवि में बिहार बोर्ड से पास होने वाले छात्रों के लिए 80 फीसदी सीट आरक्षित रखने का प्रस्ताव पारित हुआ था। 2012 में जब पीयू में इंट्रेंस परीक्षा के जरिए एडमिशन होने लगे, तब भी 60 फीसदी छात्र बिहार बोर्ड से लिए जाते थे। लेकिन, इस वर्ष पीयू में कोविड – 19 के कारण इंटरमीडियट के प्राप्तांक के आधार पर नामांकन किया जा रहा है। जिसका नुकसान बिहार बोर्ड से पास छात्रों को उठाना पड़ रहा है। एमएलसी ने कहा कि सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड में छात्रों के अंक बिहार बोर्ड की तुलना में अधिक होते हैं, जिसे आधार बनाकर अधिकतर विवि में एडमिशन हो रहा है, नतीजा यह कि आरक्षण के बाद भी बिहार बोर्ड के छात्रों को सूबे के विवि में एडमिशन नहीं हो रहा है। सिर्फ 20 फीसदी छात्र ही अपना एडमिशन करा पाने में सफल हुए हैं।
38 हजार करोड़ के शिक्षा बजट वाले राज्य का यह हाल
कहा कि जिस राज्य में शिक्षा का बजट और 38000 करोड़ से भी अधिक है उस राज्य के बोर्ड के 38% विद्यार्थी का नामांकन यहां के प्रीमियर संस्थान में नहीं होंगे जैसा कि सबको पता है बिहार बोर्ड में गांव गरीब एवं किसान के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं आपने अपनी नीतियों से समाज के अंतिम पंक्ति के परिवार के बच्चों को विद्यालय जाकर शिक्षा ग्रहण करने को प्रेरित किया परंतु दुर्भाग्यपूर्ण है कि पटना विश्वविद्यालय के इस अन्याय पूर्ण नीति के कारण ऐसे मासूम पटना विश्वविद्यालय में नामांकन से वंचित हो रहे हैं जबकि प्रवेश परीक्षा के माध्यम से किसी भी बोर्ड के बच्चे से यह बच्चे कम नहीं हैं।
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पीयू के मामले में संज्ञान लें सीएम
नवल किशोर यादव ने इस संबंध में सीएम नीतीश कुमार को पत्र लिखकर दखल देने की मांग की है। उन्होंने लिखा है कि बिहार बोर्ड के इन मासूमों के प्रति हो रहे अन्याय को अपने संज्ञान में लेकर पटना विश्वविद्यालय प्रशासन को नामांकन के लिए न्यायपूर्ण नीति निर्धारण का निर्देश दें ताकि बिहार बोर्ड के होनहारों को न्याय मिले।