आज घड़ी पर्व है । मिथिला के संस्कृति से जुड़ा एक अद्भुत पर्व । ऐसा पर्व जिन्हे मनाती तो स्त्रीयाँ है लेकिन इसके प्रसाद को वो खा नहीं सकती । लोक मान्यता है कि इस पर्व में जो प्रसाद बनता है उसे सिर्फ मर्द खा सकते हैं ।
संर्पूण मिथिला में यह पर्व बड़े धुमधाम से मनाया जाता है । इस पर्व में यहॉं कि महिलाएँ सवा किलो आटे से एक रोटी बनाती है । आप मिथिला से हो तो “घड़ी” पर्व के बारे में जानते होंगे । सावन या अषाढ़ के महिन में मुख्यतः इस पर्व को मनाते हैं । इसमें मिथिला की महिलाएँ एक विशेष प्रकार का रोट बनाते है । घर में पीसे हुए गेंहु के आटे को गुड़ और घी में मिलाकर मोटी मोटी रोटियाँ (जिसे रोट कहते है ) बनाते हैं । उसके बाद अपने अपने कुल देवता को भोग लगाया जाता है । इस रोट की खास बात यह है कि इस का उपभोग परिवार के वे पुरुष ही कर सकते हैं जो किसी एक पूर्वज के पुरुष वंशज हैं। । बाँकि बचे हुए रोट को कुलदेवता के मंदिर में ही जमीन में दबा दिया जाता है । उसको बाद मर्दो को हिदायत रहती है रोट खाने के नदी पार नहीं कर सकते ।
ऐसा ही मिलता जुलता एक पर्व मध्यप्रदेश में रोट अनुष्ठान के नाम से जाना जाता है । वहां भी यही विधियाँ अपनाई जाती है ।
कुल मिलाकर एक अनुठा त्योहार जिसके अपने कानून है ।