“दोसरकी से छई त की..अपन पहिलकी मतारी के बड़ मानई छी..बाप न पूछलथिन लेकिन बेटा बड़ नीक छै..बहुत ख्याल रख छईन बुआ,चाची,मामी,ताई,दीदी जो भी रिश्ता हो राजकुमारी देवी का” समाज से…ये संकेत जाना चाहिए समाज में..इससे तुम्हारा मान बढ़ेगा..खुद का भी और पिता का भी..
समाज हाथों हाथ लेगा तुम्हारे इस जेस्चर को। नहीं तो एक बार समाज के मन में बैठ गया कि जैसन बाप वोइसन बेटा..तो बहुत मुश्किल हो जाएगी..राजनीति और बिहारी मानस के हिसाब से राजकुमारी देवी पासवान का बेटा चिराग ही सही मायने में रीना देवी पासवान और रामविलास पासवान का सच्चा वारिस हो सकता है। पिता तो चले ही गए राजकुमारी देवी भी शायद कुछ वर्ष ही रहें लेकिन अंत समय में उनको ये अहसास होना चाहिए कि तुम उनके भी बेटे हो। तुम्हारे न चाहते हुए भी उनसे नाम जुड़ा हुआ है और तुम्हें उस नाते भी रिश्ते को निभाना है।
ये पीड़ा सिर्फ राजकुमारी देवी की पीड़ा नहीं 70 और 90 के दशक के हर उस पत्नी की पीड़ा थी जो अपने पती को अच्छे जिंदगी के वास्ते दिल्ली और कोलकात्ता जैसे शहरों में मजबूरी में विदा करती थी और सशंकित रहती थी कि पता नहीं उसके पति लौटेंगे या सौतन के घर डेरा डाल लेंगे। खैर रामविलास तो अपने समय के नायक थे और तुम वर्तमान समय के।
समाज तुमसे इस दोहरी भूमिका के बखूबी निर्वहन की अपेक्षा करता है इसी में तुम्हारी भलाई है और पिता के विरासत को संजोने में मददगार साबित होगा और राजकुमारी देवी के रहते आसानी से अपने समाज के हाशिए पर रह रहे लोगों जिनमें जयादातर हाशिए पर ही हैं आसानी से समझ पाओगे। ये बात सही है तुम्हारी कानूनी बाध्यता नहीं है लेकिन सामाजिक उत्तरदायित्व तो है।
SANTOSH KUMAR SINGH