
भाजपा अपने अंतिम वोटर तक भी यह संदेश पहुँचाने में सफ़ल रही है, कि जहाँ भाजपा खुद नहीं है वहाँ लोजपा ही भाजपा है। नीतीश कुमार की बर्बादी की कहानी इससे बेहतर शायद ही लिखी जा सकती थी। पत्रकार ऋषिकेश शर्मा कहते हैं कि हालांकि मैं इससे महागठबंधन के लिए ज़्यादा संभावनाएं देख रहा हूँ। जदयू का उम्मीदवार किसी सीट पर जितना मजबूत होगा महागठबंधन के लिए निकलना उतना ही आसान होगा। जदयू और लोजपा में जहाँ-जहाँ कांटे का टक्कर होगा, स्वाभाविक है वहाँ महागठबंधन का उम्मीदवार बहुत आसानी से निकल सकता है…
वहीं पत्रकार निराला विदेसिया कहते हैं कि राजनीति में दूसरे किस्म के भी प्री-पोल चुपकउआ अलायंस होते रहते हैं. दिखउआ मे दलों के बीच समझौता नहीं करते लेकिन अंदर ही अंदर नेता एक-दूसरे को सपोर्ट करते रहते हैं. बिहार में हिडेन अलायंस का अब तक का सबसे बेहतरीन नमूना आनंद मोहन सिंह और लालू प्रसाद यादव का रहा था. लालू प्रसाद यादव की जीत को आसान करने के लिए आनंद मोहन ने बिहार पीपुल्स पार्टी बनाकर पूरे बिहार में सवर्णों को गोलबंद करने की कोशिश की थी.
बिहार पीपुल्स पार्टी की जीत भले न हुई उस समय लेकिन लालू प्रसाद यादव की राह आसान हुई. उस वक्त जब आनंद मोहन मैदान में लालू विरोध के नाम पर बिहार पीपुल्स पार्टी लेकर आये तो लगता था कि लालू प्रसाद के समर्थक और आनंद मोहन के समर्थक एक दूसरे का गला घोंट देंगे. कार्यकर्ता-समर्थक अपने नेताओं या दलों के प्रति प्रतिबद्धता दिखाते हुए निजी रिश्ते को भी कड़वाहट में बदलते रहते हैं, आपसी रिश्ते को खत्म करते रहते हैं.
बिहार पीपुल्स पार्टी की बात तो पुरानी हुई. एक घटना मुझे याद है,जिसका गवाह रहा था और इस घटना को पहले फेसबुक पर ही लिखा भी था. भाजपा के एक नेता चुनाव जीत गये. विधायकी का चुनाव. काफी चर्चित नेता हैं. उनके पिता लालूजी के पुराने मित्र रहे थे. चुनाव जीतने के बाद विधायक बने नेताजी अगले दिन सबसे पहले अनमुनाहे में लालूजी के यहां पहुंचे आशीर्वाद लेने. लालूजी ने कहा कि मुझे मालूम था कि तुम आओगे.