पटना: बिहार से हर दिन एक बच्चे की तस्करी किए जाने के साथ यह देश में राजस्थान और पश्चिम बंगाल के बाद बाल तस्करी के दर्ज प्रकरणों के मामले में तीसरा राज्य बन गया है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, बिहार से वर्ष 2017 में 18 वर्ष से कम उम्र के कुल 395 बच्चों की तस्करी की गई, जिनमें 362 लड़के और 33 लड़कियां शामिल थीं. इनमें से 366 से जबरन बाल श्रम कराया जा रहा था. इन बच्चों को वहां से छुड़ा लिया गया है.
बीते अक्टूबर में जारी एनसीआरबी के उक्त आंकड़ों के अनुसार, बाल तस्करी के 886 मामलों के साथ राजस्थान पहले स्थान पर है, जबकि पश्चिम बंगाल 450 ऐसे मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है.
बिहार पुलिस ने 2017 में बच्चों की तस्करी करने वालों के खिलाफ 121 प्राथमिकी दर्ज कीं, लेकिन एक भी आरोप-पत्र दायर नहीं किए जाने के कारण कार्यवाही आगे नहीं बढ़ी तथा मामलों का निपटारा शून्य रहा.
अपराध अनुसंधान विभाग के अपर पुलिस महानिदेशक विनय कुमार ने बिहार में बाल तस्करी के कम मामले दर्ज होने के बारे में पूछे जाने पर कहा कि इस प्रदेश से तस्करी किए गए बच्चों के अन्य राज्यों में बरामद किए जाने पर प्राथमिकी संबंधित राज्य में दर्ज की जाती है और वहां से बरामद बच्चों को बिहार लाकर विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत उनका पुनर्वास किया जाता है.
बिहार में बाल तस्करी के 395 मामलों में से केवल 121 को लेकर ही प्राथमिकी दर्ज किए जाने तथा समय पर आरोप-पत्र दायर नहीं किए जाने के बारे में पूछे जाने पर कुमार ने कहा कि आरोप-पत्र जांच के बाद दायर किया जाता है जो प्रत्येक मामले के दर्ज होने के तीन महीने के भीतर दायर किया जाता है, लेकिन एनसीआरबी द्वारा साल में केवल एक बार डेटा मांगा जाता है.
उन्होंने कहा कि राज्य में सीसीटीएमएस (कमांड कंट्रोल ट्रांसमिटर मोबाइल सिस्टम) तंत्र के वर्तमान में विकसित नहीं होने के कारण समय पर डेटा फीड नहीं हो पाता है. सीसीटीएमएस को लागू करने के लिए काम जारी है.
बाल श्रम के खिलाफ काम कर रहे पटना स्थित एक गैर सरकारी संगठन, सेंटर डायरेक्ट के कार्यकारी निदेशक सुरेश कुमार ने कहा कि गरीबी, बाल तस्करी के कारोबार में काफी धन का लगा होना, अंतरराज्यीय समन्वय में कमी तथा कमजोर अभियोजन इसके पीछे मुख्य कारण हैं.