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सहरसा वासियों ने कभी एक सपना देखा था । उनके यहाँ भी औद्योगिक ईकाई लगेगी । खुशहाली आएगी और उनके लोगों को कमाने के लिये दिल्ली-पंजाब नहीं जाना पड़ेगा । बिहार के उस समय के तत्कालीन उद्योग मंत्री शंकर टेकरीवाल ने बैजनाथ पेपर मिल को मंजूरी दी थी । मकसद केवल इतना था कि यहाँ के लोगों को परदेश न जाना पड़े । लेकिन रमेश झा और टेकरीवाल के आपसी प्रतिद्वदिता ने इस मिल को एक दिन भी चालू नहीं रख पाया । यह पेपर मिल 1975-76 तक चार वर्षों में बनकर तैयार हो गई लेकिन यह कभी चली ही नहीं । इन चार दशकों में उन सभी दलों की सरकार रही जो राज्य के चुनावी दंगल में मुख्य प्रतिद्वंदी हैं ।
‘पेपर मिल दुलहिन की तरह सजकर तैयार हो गई थी लेकिन पता नहीं कैसे गिरकर बेहोश हो गई। उसे होश नहीं आया। अब उसकी मौत हो गई है और आप उसकी लाश को देख रहे हैं।’
भूपेन्द्र सिंह, मिल के निर्माण में काम करने वाले मजदूर
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जिस 51 एकड़ के रकबे में पेपर मिल बनी है, वहां पहले खेती होती थी। यह जमीन सहरसा के बड़े जमींदारों की थी। बैजनाथपुर के गरीब दलित व पिछड़ी जाति के लोग जमीन बटहिया पर लेकर खेती करते थे। लेकिन न अब खेती है न मिल । हम न घाट के रहे न घर के ।
शंभू मुखिया, पेपर मिल में काम करने वाले मजदूर
फिलहाल पेपर मिल के सभी उपकरणों में अब जंग लग गई है। पेपर मिल के लिए सभी तरह का ढांचा बनकर तैयार हुआ था। मिल गेट के पास ऑफिस बना है, मिल तक जाने के लिए बनी सड़क आज भी मौजूद है। लेकिन इन चालीस वर्षो में कोई नेता इस सड़क को नहीं लांघ पाया है ।
शंकर टेकड़ीवाल जब बिहार के वित्त मंत्री थे तो उन्होंने मिल चलवाने के लिए दो करोड़ की व्यवस्था करने की कोशिश की थी, लेकिन यह पैसा नहीं मिला। सहरसा के लोग पेपर मिल न चलने को लेकर दो बड़े नेताओं रमेश झा और टेकड़ीवाल की राजनीतिक प्रतिद्वंदिता को जिम्मेदार ठहराते हैं।
कांग्रेस सरकार में सहरसा का प्रतिनिधित्व करने वाले रमेश झा उद्योग मंत्री बने। उनके कार्यकाल में मिल बनी। उनके बाद सहरसा का प्रतिनिधित्व करने वाले शंकर लाल टेकड़ीवाल वित्त मंत्री बने लेकिन वे पेपर मिल चलवा नहीं पाए। बताया जाता है कि बिहार सरकार ने इस पेपर मिल को चलाने के लिए निजी उद्यमियों से करार करने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। तब सरकार ने खुद मिल चलाने का फैसला लिया लेकिन यह फैसला धरातल पर उतर नहीं सका।
बिहार अर्थिक सर्वे 2019-20 के अनुसार बिहार में 2016-17 में कृषि और गैर कृषि आधारित कुल कारखाने 3,551 हैं जिसमें कृषि अधारित 1,229 और गैर कृषि आधारित 2,302 कारखाने है।
इनमें से 2,908 ही चल रहे हैं। करीब 18 फीसदी कारखाने विभिन्न कारणों से बंद हैं। वर्ष 2013-14 के वक्त प्रदेश के कुल कारखानों में से 91.6 फीसदी संचालित थे। इसके बाद से इसमें क्रमशः गिरावट आती गई है और अब यह 82.4 फीसदी तक पहुंच गया है।
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औने-पौने कीमतों में बेची जा रही है मिल
बियाडा ने इस कारखाने को बेचने की तैयारी कर ली है । 2019 में ही इसकी भैलुएशन कर ली गई थी । 75 में जिस कारखाने को चालू करवाने के एवज में ही 2 करोड़ की राशी स्वीकृत हुई थी आज उस पुरे कारखाने की कीमत 5 करोड़ 80 लाख रूपये लगाई जा रही है । सरकार का कहना है कि इस जमीन को बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण के हवाले करना है । इसलिये इसके कबाड़ को बेचना पड़ेगा । जबकि मिल के उस मशीन की कीमत अभी भी बियाडा द्वारा लगाए गए मुल्य से कहीं अधिक है । और अगर इस क्षेत्र का औद्योगिक विकास ही करना है तो फिर पेपर मिल को ही क्यों नहीं चालू करवाया जाता है । सवाल बहुत है लेकिन जन प्रतिनिधी और अफसर मौन है ।
भूमि बैंक के नाम बियाडा ने हड़पी जमीन
विदित हो कि उद्योग विभाग द्वारा भविष्य में संभावित औद्योगिक इकाइयों/परियोजनाओं के संदर्भ में भूमि बैंक तैयार की जा रही है। कोसी परियोजना से संबंधित बेकार पड़ी भूमि को भी उक्त भूमि बैंक में सम्मिलित किया जाएगा। पॉलिटेकनिक ढाला के निकट मलवरी एक्सटेंशन सेंटर की नौ एकड़ भूमि एवं उसी के समाने बियाडा के छह एकड़ भूमि भी भूमि बैंक में सम्मिलित होगा।