गांगेय क्षेत्र के भू-जल के बाद बिहार के घरों में पहुंचने वाली खाद्य सामग्री विशेष रूप से गेहूं और आलू में आर्सेनिक के असर की पुष्टि हुई है। बिहार के दो क्षेत्रों-बक्सर से भागलपुर के बीच कुछ गांवों में डोर- टू- डोर जुटायी गयी खाद्य सामग्री की लैब जांच के बाद इसका पता चला है। इस संबंध में रिसर्च पेपर हाल ही में प्रकाशित हुआ है।
इस तरह यह साफ हो गया है कि आर्सेनिक भू-जल के बाद अब राज्य की खाद्य श्ृंखला में प्रवेश कर चुका है। खाद्य पर्यावरण विज्ञानी इसे बड़ा खतरा मान रहे हैं। खाद्य श्ृंखला में आर्सेनिक के असर से न केवल नयी खतरनाक बीमारियां, बल्कि दूसरी बीमारियां और तीव्र हो सकती हैं।
इससे पहले केवल पश्चिम बंगाल की खाद्य श्ृंखला में विशेष कर चावल में इसका असर देखा गया था। बिहार में किये गये हालिया सर्वे में चौंकाने वाला तथ्य यह है कि आर्सेनिक की वजह स्थानीय भू-जल नहीं है। दरअसल, ऐसे उत्पादों में आर्सेनिक पाया गया, जो बिहार में ही कहीं दूर से या दूसरे राज्यों से लाये गये हैं। इस परिणाम से जुड़े विज्ञानी हैरान हैं।
जानकारी के मुताबिक अध्ययन के लिए लिये गये आलू और गेहूं के सैंपल डोर-टू डोर जाकर घरों से लिये गये थे। आर्सेनिक का असर जानने के लिए अब तक की सर्वाधिक आधुनिकतम वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया।
उल्लेखनीय है कि यह सर्वे आधारित यह वैज्ञानिक अध्ययन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कैंसर रिसर्च संस्थान और यूनाइटेड किंगडम की संस्था यूकेरी ने संयुक्त रूप से इंडो-यूके प्रोजेक्ट के तहत किया था। इससे पहले पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में उपजाये जा रहे चावल में आर्सेनिक की पुष्टि हुई थी।
अत्याधिक भू-जल दोहन है आर्सेनिक के बढ़ते असर की वजह
हिमालय में पाया जाने वाला यह तत्व विभिन्न माध्यमों से भू-गर्भ में सैकड़ों साल से जमा है। बेहद कठोर चट्टान के रूप में यह तत्व हिमालय से निकलने वाली अधिकतर नदियों के बेसिन के भू-गर्भ में जमा हो गया है। यह सतह या धरातल के जल अर्थात कुंओं और तालाबों में नहीं मिलता।
इसकी उपस्थिति अत्याधिक गहराई में खोदे जा रहे ट्यूबबेल के पानी में ज्यादा निकलता है, क्योंकि नलकूप की बोरिंग के दौरान भू-गर्भ में कठोर तत्व के रूप में जमा आर्सेनिक टूट जाता है। इसके बाद रासायनिक क्रिया के बाद वह पानी में घुल जाता है।
दिल, गुर्दा, फेफड़े पर असर करता है आर्सेनिक
विशेषज्ञों के मुताबिक, आर्सेनिकयुक्त खाद्य पदार्थ शरीर पर घातक असर छोड़ता है। दरअसल, आर्सेनिक एक जहरीला धातु है। अगर इसका उपयोग अधिक मात्रा में किया जाये, तो मानव शरीर को काफी नुकसान पहुंचाता है।
इसके सेवन से दिल, फेफड़े, गुर्दे, दिमाग और त्वचा इत्यादि में तरह-तरह के रोग पैदा हो जाते हैं। यहां तक की बिहार के गंगा से सटे इलाकों में आर्सेनिक युक्त पानी पीने से कैंसर होने की बात भी सामने आयी है।
पर्यावरण विज्ञानी व अध्यक्ष, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद डॉ अशोक कुमार घोष ने कहा कि डोर- टू- डोर जाकर लिये गये सैंपल के विश्लेषण के बाद यह पहली बार खुलासा हुआ है कि बिहार के विभिन्न इलाकों में पहुंच रहे गेहूं और आलू में आर्सेनिक मौजूद है।
यह सामान्य लिमिट से अधिक है। सैंपल में लिये गये गेहूं या आलू बिहार में बाहर से आये बताये गये हैं। फिलहाल इस संबंध में घबराने की जरूरत नहीं है। व्यापक जागरूकता की जरूरत है। हमें अत्याधिक गहराई वाले नलकूप खनन को हतोत्साहित करने की जरूरत है।
साभार – प्रभात खबर