एक नस का खून चुपचाप दूसरी नसोंं में उतर गया, उसने अलीशा और विजय में भेद नहीं किया। वह खून जो काम अलीशा के शरीर में कर रहा था, वही काम अब विजय के शरीर मेंं कर रहा है। फिर हम सब भेद क्यों करते हैं? ईश्वर ने हमारे खून में भेद नहीं किया है, हम सब्जियों में, अनाजों में, पानियों में, हवाओं में भी भेद क्यों करना चाहते हैं? विजय कुमार को लंबे समय से लीवर का संक्रमण है।
कुछ दिनों पहले शरीर में हीमोग्लोबिन तेजी गिरने लगा। विजय की हालत लगातार बिगड़ रही थी। विजय को खून की जरूरत थी। डॉक्टरोंं को ब्लड बैंक से खून नहीं मिला। परिजनों से कहा गया कि खून की व्यवस्था करें। परिजन कई दिन से परेशान थे लेकिन कोई रक्तदाता नहीं मिल रहा था। लॉकडाउन में यह और मुश्किल है। मामला एक सामाजिक संस्था तक पहुंचा। कई लोगोंं से होते हुए बात अलीशा तक पहुंची। अलीशा का भी ब्लड ग्रुप भी वही था।
पहले तो अलीशा ने रोजे का हवाला दिया लेकिन जब मरीज की हालत का पता चला तो उन्होंने रोजा तोड़ दिया और विजय को खून चढ़ाया गया। अलीशा, विजय कुमार को नहीं जानती थींं। इससे क्या फर्क है! वे खून देने पहुंच गईं। मामला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी का है। किसी की जान बचा लेने, मुसीबत से किसी को उबार लेने से बड़ा धरम कौन सा है?
सबक यह है कि दया, करुणा, मानवता और प्रेम से बढ़कर कोई धर्म नहीं हैं। सब धर्मों और विचारों का सार यही है। हम अलग-अलग धर्मों और विचारों को मानने वाले लोग एक ही समाज का हिस्सा हैं, हम सबको हमेशा एक-दूसरे की जरूरत है।
Krishnakant, Sr। journalist