कोरोना के प्रकोप के बीच बिहार सरकार ने सरकारी स्कूलों में पढने वाले लाखों बच्चों को भगवान भरोसे रखकर स्कूल खोल दिया है। कोरोना गाइडलाइंस की मुनादी करने वाली सरकार ने सूबे के किसी स्कूल में साबुन-सेनेटाइजर, मास्क के लिए चवन्नी तक नहीं दिया है। फिर भी सरकार का फरमान है कि स्कूलों में कोरोना गाइडलाइंस के तहत व्यवस्था करनी है। अब हालत ये है कि पहले जो सरकारी शिक्षक चावल के बोरा का हिसाब दे रहे थे, वे साबुन-सेनेटाइजर के जुगाड़ में लगे हैं।
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ज्यादा दिनों की बात नहीं है जब सरकार ने सरकारी स्कूलों को चावल के उन बोरों का हिसाब देने को कहा था जो मिड डे मिल के तहत स्कूलों को भेजे जाते हैं। इसके बाद जब एक शिक्षक ने चौराहे पर बोरा बेचा तो सरकार ने उन्हें सस्पेंड कर दिया था। सरकार ने नया कारनामा ये किया है कि बच्चों को कोरोना से बचाने का सारा बोझ शिक्षकों के मत्थे मढ़ दिया है। बिहार में 16 अगस्त से सरकारी स्कूल खुल गये हैं। सरकार ने स्कूलों को खोलने के साथ ही फरमान जारी किया है कि वहां हर वो इंतजाम करना है जिससे बच्चों को कोरोना के प्रकोप से बचाया जा सके। लेकिन सूबे के किसी सरकारी स्कूल में एक चवन्नी तक नहीं दी गयी है। लिहाजा मास्टर साहब को अपनी जेब से साबुन-सेनेटाइजर, मास्क ही नहीं बल्कि चॉक औऱ डस्टर का भी इंतजाम करना है। वर्ना सरकार तो उनके खिलाफ कार्रवाई कर ही देगी।
सरकार का क्या है फरमान
सरकार ने स्कूलों के लिए निर्देश जारी किया है। स्कूल अगर खुलेंगे तो वहां साफ सफाई की पर्याप्त व्यवस्था होगी। क्लास रूम से लेकर पूरे स्कूल को सेनेटाइज कराना होगा। इसके साथ ही स्कूल आने वाले बच्चों के लिए सेनेटाइजर, मास्क के साथ साथ हाथ धोने के लिए साबुन का इंतजामन करना होगा। सरकार ने ये भी कहा है कि जो स्कूल इसका पालन नहीं करेंगे उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। बच्चों से मोटी फीस लेने वाले निजी स्कूल तो बंदोबस्त कर लेंगे लेकिन बिहार के सरकारी स्कूलों में इन चीजों का इंतजाम कहां से होगा ये सरकार ने नहीं बताया। बिहार सरकार ने सरकारी स्कूलों में कोरोना गाइडलाइंस का पालन करने के लिए एक चवन्नी तक नहीं दी है।
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सरकारी स्कूलों के पास पैसे नहीं
ऐसा भी नहीं है कि बिहार के सरकारी स्कूलों के खाते में पहले से पैसा है जिसे खर्च कर कोरोना गाइडलाइंस का पालन कराया जा सके। सरकारी स्कूलों के खाते में एक चवन्नी तक नहीं है। कोरोना गाइडलाइंस के पालन के लिए इंतजाम करने की बात कौन कहे स्कूलों में च़ॉक और डस्टर खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं। सूबे के कई स्कूलों के प्रधान शिक्षक ने बताया कि इस साल जून महीने में सरकार का आदेश आय़ा था कि स्कूल के पास जितना पैसा है उसे जमा कर दें और उसके साथ उपयोगिता प्रमाण पत्र भी सौंप दें। समग्र शिक्षा के तहत स्कूलों के पास पैसे होते थे लेकिन उसे भी जमा करा लिया गया है। अब स्कूलों के पास फूटी कौड़ी नहीं है। फिर कोरोना गाइडलाइंस का पालन कैसे होगा।