आज 18 अगस्त है. हम कोसी वालों के लिए यह एक बड़ी मनहूस तारीख है. बारह साल पहले आज के दिन ही हमारे इलाके में वह भीषण आपदा आयी थी जिसे कोसी महाप्रलय का नाम दिया गया था. नदी ने अपनी धारा बदल ली थी और सैकड़ों गांवों में बसे लाखों कोसी वासी एक झटके में सड़क पर आ गये थे. सैकड़ों लोगों को जान गंवानी पड़ी थी. लाखों मकान दह गये थे. बाढ़ का पानी जब लौटा तो खेतों में बालू भरा था… मवेशियों का अता-पता नहीं था.
उस वक्त हमारे सीएम ने हमारे इलाके में आकर बड़े दावे के साथ कहा था कि यह आपदा एक अवसर भी है. हम सुंदर कोसी बसायेंगे और वह कोसी ऐसी होगी कि आप उसे देखकर इस आपदा को भूल जायेंगे. उनके इस दावे के पीछे विश्व बैंक के 1009 मिलियन डॉलर(यानी आज के हिसाब से 6500 करोड़ रुपये) के पैकेज की ताकत थी. मगर इस पैकेज के बावजूद 12 साल हो गये… सुंदर कोसी का “स” भी नहीं बस पाया है. जख्म अभी तक हरे हैं. बल्कि अब लोग सड़कों के लिए आन्दोलन कर रहे हैं.
जब यह पैकेज मिला था तो राज्य सरकार ने इसे खर्च करने के लिए कोसी पुनर्वास एवं पुनर्निमाण सोसाइटी का गठन किया था. आकलन किया गया तो पता चला कि 2,36,632 लाख परिवार बेघर हुए हैं, इसलिए पहले बेघरों को मकान उपलब्ध कराया जाये. पहले तय हुआ कि 2 लाख लोगों को मकान दिये जायेंगे. फिर यह आंकड़ा घट कर एक लाख हुआ और 2014 में सोसाइटी के अधिकारियों ने कहा कि हमारा लक्ष्य अब 66,203 लोगों को मकान उपलब्ध कराना हो गया है. जब मैंने पूछा कि कितने मकान बने हैं तो उन्होंने कहा, 27,203. और यह मकान भी किस तरह बना है वह इस पोस्ट के साथ लगी तसवीर में देख सकते हैं. ज्यादातर मकान आधे-अधूरे हैं.
इसकी वजह यह है कि सोसाइटी एक मकान बनाने के लिए सिर्फ 55 हजार रुपये देती है और उसका नक्शा ऐसा है कि मकान बनवाने में 1.50 लाख रुपये लग जायें.
37 क्षतिग्रस्त सड़कों के पुनर्निर्माण की बात थी मगर 2014 तक सिर्फ एक ही सड़क बन पायी थी. 70 क्षतिग्रस्त पुल-पुलियों का निर्माण होना था, मगर सिर्फ 34 पुलिया ही बन पायी हैं. काम की रफ्तार इतनी धीमी है कि विश्व बैंक ने सोसाइटी को कई बार फटकार लगायी है और फंड में कटौती भी कर दी गयी है.
14,129 एकड़ जमीन में बालू जमा है. यह बालू दो से चार फीट तक ऊंचा है. एक एकड़ जमीन से बालू हटाने का खर्च 50 हजार से कम नहीं है. मगर सोसाइटी वाले कहते हैं कि अभी उनके एजेंडे में बालू हटाने का काम नहीं है. इस बीच रोजगार की कमी की वजह से पलायन की दर भी तेज हुई है.
आंकड़े बताते हैं कि सोसाइटी वाले फेल हो चुके हैं और इस तरह नीतीश जी का सुंदर कोसी बसाने का दावा भी असफल साबित हुआ है.
तेरे वादे पे जियें हम तो ऐ जान झूठ जाना
के खुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता.
-Pushya Mitra