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ओलंपिक । सभी को बस एक ही आश रहती है । अपने सुनहरे अवसर की तरफ । यानी स्वर्ण पाने के अवसर की तरफ । यह अवसर कभी कभी आता है और जब आता है तो इतिहास में दर्ज हो जाता है ।
इन क़ीमती मेडल्स को पाने के लिए एथलीटस अपना खून और पसीना लगा देते हैं। यह पदक साहस, अनुशासन और अनगिनत त्याग की निशानी है जिसे वह गर्व से अपने गले पर सजाते हैं। मगर इन मेडल्स की असल क़ीमत आख़िर क्या होती होगी? आइए, आपको बताते हैं।
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ये तो हमें पता ही है कि तीन तरह के पदक विजेता के गले में सजते हैं। स्वर्ण पदक, रजत पदक और कांस्य पदक। ओलंपिक चैंपियन को पहली बार स्वर्ण पदक अमेरिका के सेंट लुइस में आयोजित 1904 के ओलंपिक खेलों के दौरान दिया गया था। इससे पहले सोने को बहुत महंगा माना जाता था इसलिए विजेता को रजत पदक और उपविजेता को कांस्य दिया जाता था, जबकि तीसरे स्थान के लिए कोई पदक नहीं होता था।
इतना ही नहीं, 1912 तक ओलंपिक मेडल्स में स्वर्ण पदक शुद्ध सोने से बनता था। मगर पहले विश्व युद्ध के बाद देशों ने स्वर्ण पदक को चांदी से बनाना शुरू कर दिया और उस पर सोने की एक परत चढ़ाने लगे।
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स्वर्ण पदक
यह पदक 556 ग्राम का होता है। इस पर शुद्ध चांदी पर 6 ग्राम से अधिक सोना चढ़ता है। BBC की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल के ओलम्पिक खेलों में जो स्वर्ण पदक दिया जा रहा है उसकी क़ीमत लगभग 55,000 रुपये है।
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रजत पदक
उप-विजेता को रजत पदक से सम्मानित किया जाता है। यह 550 ग्राम का होता है और शुद्ध चांदी से बना होता है। इस साल के ओलम्पिक खेलों में इस पदक की क़ीमत लगभग 31,000 रुपये है।
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कांस्य पदक
दूसरे उप-विजेता को कांस्य पदक मिलता है। यह 450 ग्राम का होता है। यह 95% तांबा और 5% ज़िंक को मिलाकर बनाया गया है। इसकी क़ीमत लगभग 515 रुपये की होती है।
ऐसा बहुत ही कम हुआ है मगर कई बार आर्थिक तंगी या चैरिटी के लिए कुछ ओलंपिक विजेताओं ने अपने मेडल बेचे हैं। नीलामी में इन मेडल्स की क़ीमत 1,33,45,954 करोड़ रुपये तक गई है। बेशक़ कहने को तो इन मेडल्स की क़ीमत है मगर वे जिस उपलब्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं उसे इस दुनिया की किसी भी संख्या में नहीं नापा जा सकता है।