अमित शाह जिसके माथे पर हाथ रखते हैं,उसके पिछवाडे़ से कुर्सी खिसक जाती है। भरोसा न हो रहा हो तो जान लीजिए! महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फडणवीस सत्ता से बेदखल हो गये। झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के नीचे से कुर्सी खिसक गयी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह की सत्ता छिन गयी।
मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ऊपर अमित शाह का साया था। ये दोनों भी सत्ता से बेदखल हो गये। जैसे-तैसे हरियाणा में मनोहरलाल खट्टर की कुर्सी बच गयी। सामने दिल्ली में चुनाव है। उसके बाद बिहार की बारी है। देखना है शाह की कृपा किस पर भारी पड़ती है।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के गृह मंत्री अमित शाह फिर कह गये हैं कि बिहार विधानसभा का अगला चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लडा़ जायेगा। नीतीश कुमार और जेडीयू के साथ उनका गठजोड़ अटूट है। शाह ने तीसरी बार नीतीश से अपने ‘अटूट रिश्ते’ की दुहाई दी है।
बिहार के वैशाली में 16 जनवरी की सभा में अमित शाह ने जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में विधानसभा का चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो सोशल मीडिया में चर्चा होने लगी कि शाह जिसके सिर पर हाथ रखते हैं,उसकी सत्ता का नाश हो जाता है। इस तर्क के समर्थन में बीजेपी शासित रहे उन छह राज्यों के नाम गिना दिये गये जिनके मुख्यमंत्रियों की सत्ता छिन गयी।
हालांकि सोशल मीडिया में चली इस चर्चा से अलग जिस बात पर गंभीर बहस चल रही है ,वह यह है कि क्या सचमुच नीतीश कुमार को अमित शाह का ‘अभयदान’ मिल गया है? अगर नहीं तो, क्या पर्दे के पीछे कुछ और चल रहा है! जानकारों का कहना है कि खेल अभी बाकी है। अमित शाह ने नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कही है। उन्होंने यह नहीं कहा है कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। लिहाजा उनकी इस घोषणा का खास मतलब नहीं है। यह तो दोनों दलों में बढती तल्खी कम करने के लिए कही गयी बात है।
जानकार बताते हैं कि बीजेपी राज्यों में भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नाम पर चुनाव लड़ती आ रही है। नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री तय करती है। वह बिहार में सत्ता की ड्राइविंग सीट पर बैठने की तमन्ना रखती है। साधारण भाजपाई नेताओं से लेकर रसूखदार भाजपाइयों के मुंह से गाहे-ब-गाहे इस तमन्ना का प्रकटीकरण होता रहता है। एमएलसी डा संजय पासवान और केंद्रीय गिरिराज सिंह इस बात की पैरोकारी करते रहे हैं कि नीतीश कुमार को बिहार की कमान बीजेपी को सौंप देनी चाहिए।
बिहार में बीजेपी की अपनी सरकार की तमन्ना से नीतीश कुमार भी अवगत हैं! ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नीतीश कुमार अमित शाह की इस घोषणा से ही संतुष्ट हो जायेंगे कि बिहार का चुनाव नीतीश के नेतृत्व में ही लडा़ जायेगा। जानकार बताते हैं कि ऐसा नहीं है। बिहार विधानसभा का पिछला चुनाव इसका उदाहरण है। लोगों को याद है कि जब तक राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने नीतीश को ही मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा नहीं की थी तब तक नीतीश कन्नी काटते रहे थे। वे रूठ कर राहुल गांधी से मिलने दिल्ली पहुंच गये थे। नीतीश का हठ पूरा करने के लिए शरद यादव, मुलायम सिंह यादव और सोनिया गांधी ने लालू यादव पर दबाव डाल कर ऐलान करवाया कि नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे!
जानकारों का कहना है कि इस साल के अंत से ठीक पहले होने वाले विधानसभा चुनाव से पूर्व बिहार की राजनीति में ढेर सारे उलट-फेर होंगे। जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस बार भी नीतीश के शिल्पकार होंगे।
पिछले चुनाव में जाने-माने गीतकार राज शेखर रचित चुनावी जिंगल, बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है’ की धूम मची और प्रशांत किशोर की रणनीति का डंका बजा था। नेपथ्य में जाते दिख रहे प्रशांत किशोर की बिहार के राजनीतिक रंगमंच पर वापसी पर नजर रखने वाले बता रहे हैं कि नीतीश ने बीजेपी की रणनीति का जवाब देने की जिम्मेवारी पीके को सौंप दी है।