दरभंगा : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्वपोषित संस्थान दूरस्थ शिक्षा निदेशालय और मुम्बई की एक कम्पनी के बीच राजस्व बंटवारा को लेकर किया गया एकरारनामा गैरकानूनी, अवैध और विश्वविद्यालय अधिनियम के विपरीत रहने के कारण सिण्डीकेट द्वारा एकरारनामा को रद्द करने के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा एक साल बीतने के बाद भी एकरारनामा को बरकरार रखना अब यहां यक्षप्रश्न बन गया है।
सत्तारूढ़ दल के लोग तो इस एकरारनामा को रद्द करने का निर्णय सिण्डीकेट में तो लिये ही, सिनेट में भी स्कूल गुरु का मुद्दा सुर्खियों में रहा। अब तो विपक्षी दल भी इस मुद्दे को जोर शोर से उठा रहें हैं। जिसका असर चुनावी साल में सरकार पर भी पड़ सकता है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि विश्वविद्यालय बचाओ संघर्ष समिति जिसमें राजद सहित पक्ष-विपक्ष के लोग शामिल है। इन्होंने इस मुद्दे पर धरना देकर अपना विरोध जता दिया है। अब यह संघर्ष समिति इस मुद्दे पर विश्वविद्यालय प्रशासन और राज्य सरकार को घेरने की रणनीति को अंतिम रूप देने में जुटा हुआ है।
सवाल उठता है कि यह समझौता कैसा है कि सिण्डीकेट के निर्णय के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन एकरारनामा रद्द नहीं करना चाहता? विश्वविद्यालय के जानकार कहते हैं कि विश्वविद्यालय अधिनियम में राजस्व बटबारा का कहीं से गूंजायस नहीं है और दूरस्थ शिक्षा निदेशालय ने तो राजस्व बटबारे का एकरारनामा कर दिया। दूरस्थ शिक्षा के छात्र स्कूल गुरु के छात्र हो गये हैं और स्कूल गुरु छात्रों से वसूली गयी फीस दूरस्थ शिक्षा को लौटायेगा। इतना ही नहीं इस एकरारनामा के लिए न तो कोई निविदा निकाली गयी और न ही इसे प्रचारित-प्रसारित किया गया।
एकरारनामा के बाद जब इस बात की जानकारी विधानसभा प्राक्कलन समिति के सभापति विधायक सह सिण्डीकेट सदस्य संजय सरावगी को मिला, तो उन्होंने सिण्डीकेट में इस मुद्दे को उठाया। लेकिन कुलपति की अध्यक्षता में आयोजित सिण्डीकेट में पहले विधायक को मनाने का प्रयास किया गया। बैठक दर बैठक विश्वविद्यालय प्रशासन इसे टालता रहा। लेकिन तब तक सिण्डीकेट के सदस्य के रूप में डॉ. हरिनारायण सिंह आ गये। जब इन दोनों ने और सहयोगियों के साथ मिलकर इस मुद्दे पर अड़े रहें, तब सिण्डीकेट ने जांच के लिए कमिटी बना दी। जिनमें दो विधायक थे। जांच कमिटी के सहयोग के लिए विश्वविद्यालय के कुलसचिव को इसमें रखा गया। जांच में समझौता पूरी तरह गैर कानूनी, अवैध और विश्वविद्यालय अधिनियम के विपरीत पाया गया।
इस कमिटी की अनुशंसा पर सिण्डीकेट ने एकरारनामा रद्द करने का निर्णय लिया, लेकिन फिर एक कमिटी बना दी गयी। उस कमिटी ने भी जांच रिपोर्ट सिण्डीकेट में सौंपा और स्थायी रूप से एकरारनामा रद्द करने का निर्णय लिया। बावजूद अभी तक एकरारनामा रद्द नहीं हुआ है। विश्वविद्यालय के जानकार कहते हैं कि एकरारनामा के लिए कुलपति ने स्वीकृति दी थी। बिना कुलपति के स्वीकृति के विश्वविद्यालय में किसी भी तरह का कार्य नियम विरूद्ध होगा। ऐसे में इसके लिए मुख्य रूप से कुलपति जवाबदेह हैं और उसके बाद तत्कालीन कुलसचिव और दूरस्थ शिक्षा के अधिकारी। जिनलोगों ने एकरारनामा पर हस्ताक्षर किये हैं। वैसे कुलपति का कार्यकाल महज 5 माह बचा है।
इसी बीच सिण्डीकेट सदस्य व भाजपा नेता डॉ. हरिनारायण सिंह ने बताया कि वे राज्य सरकार व कुलाधिपति कार्यालय को विधिवत आरोप पत्र समर्पित करने जा रहें हैं। बहरहाल राज्य सरकार इस मुद्दे को निगरानी से जांच कराती है तो कुलपति भी लपेटे में आ जायेंगे। क्योंकि ये सारे निर्णय उन्हीं के आदेश से हुआ है। यही कारण है कि एकरारनामा रद्द का मुद्दा यक्षप्रश्न बन गया है।