मुंशी प्रेमचंद ने एक कहानी लिखी थी कफन । उसमें कफन के लिये घीसू ने जो पापड़ बेले वह कहानी बड़ी मार्मिक है । लेकिन महाराष्ट्र के पालघर की कहानी उससे भी मार्मिक है । वहाँ के एक आदिवासी ने सिर्फ इसलिये जान दे दिया क्योंकि उसने अपने बेटे के मौ’त पर कफन के लिये जो पैसे लिये थे उसे नहीं चुका पाया । नवंबर 2020 में कालू पवार के 13 साल के बेटे की मौ’त हो गई थी। बेटे की मौ’त के बाद कालू पवार पर यह ज़िम्मेदारी थी कि वो कम से कम कफ़न का इंतज़ाम करे।
इसके लिए उन्होंने रामदास अंबु कोर्डे से 500 रूपये उधार लिए थे। रामदास अंबु कोर्डे स्थानीय विधायक सुनील भुसारा के क़रीबी सहयोगी हैं। ख़बरों के अनुसार 500 रूपये क़र्ज़ के बदले रामदास ने कालू पवार से महीनों तक अपने खेतों में बिना पैसे दिए काम करवाया था। अब मोखदा पुलिस ने कोर्डे के खिलाफ बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है। पुलिस ने 2 अगस्त को पवार की पत्नी सावित्रा द्वारा शिकायत दर्ज कराने के बाद कोर्डे के खिलाफ एफ़आइआर दर्ज की थी।
लेकिन बताया गया है कि पुलिस ने शुरू में एक आकस्मिक मौ’त की रिपोर्ट (एडीआर) दर्ज की थी। लेकिन एक सामाजिक कार्यकर्ता के हस्तक्षेप के बाद पुलिस को 4 अगस्त को पवार के शव को निकालने और पोस्टमार्टम के लिए मुंबई के जे जे अस्पताल भेजना पड़ा। सावित्रा ने अपनी पुलिस शिकायत में कहा कि कोर्डे पिछले साल नवंबर से उसके पति को परेशान कर रही थे। पवार ने अपने बेटे दत्तू के अंतिम संस्कार के लिए पैसे उधार लिए थे। उनके बेटे का शव दिवाली की पूर्व संध्या पर रहस्यमय परिस्थितियों में मिला था।
सावित्रा ने अपनी शिकायत में कहा कि पवार को पैसे देने पर सहमति जताते हुए कोर्डे ने उन्हें अपने खेत में काम करने और मवेशियों को चराने के लिए ले जाने का निर्देश दिया।“दत्तू का अंतिम संस्कार करने के बाद, मेरे पति ने कोर्डे के खेत में काम करना शुरू कर दिया। लेकिन इस काम का कोई दैनिक वेतन तय नहीं किया गया था। कालू पवार को दिन भर काम करने के बदले दो वक़्त की रोटी दी जाती थी।
लेकिन जब कालू पवार ने मज़दूरी की बात की तो रामदास ने उन्हें धमकाना शुरू कर दिया। पुलिस ने मामला तो दर्ज कर लिया है लेकिन इस मामले में अभी किसी की गिरफ़्तारी नहीं हुई है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इस मामले में विस्तृत पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतज़ार किया जा रहा है।