राकेश
मुंबई । मुंबई मिरर की आज की लीड स्टोरी है। पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक से रातो-रात 49 फिक्स्ड डिपॉजिट तुड़वाये गये। ये रकम लगभग 16 करोड़ रुपये के बराबर है। अखबार ने सवाल उठाया है कि आखिर एक साथ इतने लोगों ने यह फैसला क्यों किया?
रिपोर्ट का सीधा-सीधा मतलब यह है कि बैंक के खिलाफ आरबीआई की कार्रवाई की ख़बर सलेक्टिव तरीके से लीक की गई। जिन्हें पता था उन्होने पैसे निकाल लिये और बाकी लोगों के घर में मातम है।
बेटी की शादी के लिए एफडी करवाने वाले एक बुजुर्ग के हार्ट अटैक की खबर आ चुकी है। तबाही और घनघोर डिप्रेशन से भरी ऐसी दर्जनों कहानियाँ हर रोज़ मुंबई के अखबारों में आ रही हैं। अखबार ने आज एयर होस्टेस रही 65 साल की एक अकेली महिला की कहानी छापी है, जिनकी कुल जमा पूँजी उसी बैंक में है और अब उनके पास रोजमर्रा की ज़रूरतों तक के लिए पैसे नहीं हैं।
अगर मिरर यह रिपोर्ट नहीं छापता तब भी लोग यह मानकर चलते कि कुछ ना कुछ गोलमाल हुआ होगा। वित्तीय तंत्र की ईमानदारी और पारदर्शिता पर इस देश में यकीन अब किसे है?
नोटबंदी लागू होने के बाद कई ऐसी खबरें आई थीं कि कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों के यहाँ कैश का लेन-देन कई महीना पहले बंद हो चुका था। हाल ही में मुझे एक रेडियो टैक्सी ड्राइवर मिला था जिसने बड़े गर्व से बताया कि नोटबंदी के दौरान मैने बारह लाख कमाये।
वह महाराष्ट्र के सांगली जिले का रहने वाला है। उसका बहनोई पास के इलाके में थानेदार है, जिसने उसे गाँव की औरतों के नाम पर एकाउंट खुलावकर नकद जमा करवाने का ठेका दिया था। अगर आपका कोई करीबी मित्र या रिश्तेदार बैंकिंग सेक्टर में है तो आप आसानी से पुष्टि कर सकते हैं कि नोटबंदी के दौरान क्या चल रहा था।
वित्तीय तंत्र चाहे कुप्रबंधन की वजह से बर्बाद हो या बड़े घोटालों की वजह से तबाह हो, इसका हर्जाना हमेशा आम नागरिकों से ही वसूला जाता है। पंजाब एंड महाराष्ट्र बैंक इसका सबसे सटीक उदाहरण है।
यह बात भी बहुत साफ है कि आरबीआई जैसी नियामक संस्थाएँ भी इस देश के आम नागरिकों और संविधान के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं। अन्यथा निगरानी में नाकाम होने के बाद इसका पूरा बोझ उन खाता धारकों पर क्यों डाला जाता जो पहले ही बैकिंग व्यवस्था को शक की नज़र से देख रहे हैं।
आपने इस देश में अरबों के बैड लोन कौड़ियों के भाव सैटल होते देखे होंगे। दूसरी तरफ आपमें से बहुत से ऐसे लोग होंगे बैंक-बिल्डर के नेक्सस में फँसकर बरसों से सिर्फ ब्याज भर रहे हैं, मकान का कोई अता-पता नहीं है। एक बार बैंक में जाकर पता कीजियेगा मालूम यह होगा कि बैंक आपसे सिर्फ ब्याज वसूल रहा है मूलधन ज्यों का त्यों है, क्योंकि यह प्री ईमआई है।
सरकारी शैक्षणिक संस्थानों की फीस हाल के दिनों बेतहाशा बढ़ी है। यह तब है, जब इस देश करदाता टैक्स के अलावा अपनी आय का तीन फीसदी हिस्सा एजुकेशन सेस के नाम पर देते हैं। इरफान खान की फिल्म मदारी का डायलॉग था– यह बात सच नहीं है कि सरकार में करप्शन है। सच यह है कि सरकार करप्शन के लिए ही है।