मैं बहुत कम नेताओं की मित्र सूची में हूं। उनमें से एक शिवानंद तिवारी है। समाजवादी हैं, इसलिए कभी कभी महिलाओं के प्रति उनके बयान से आहत होती रही हूं, लेकिन उनसे वैचारिक मतभेद कम ही है।
राजनेताओं के बेटे में शिवानंद योग्य है। रमानंद तिवारी बिहार के गृहमंत्री ही नहीं, आजादी के समय दूसरे सबसे प्रभावशाली नेताओं में एक थे। 1946 से 1950 तक के दस्तावेजों में उनका नाम बार बार आता है, जो बताता है कि उनकी हैसियत सरकार और राजनीति में क्या थी। आज शिवानंद जी का अपना परिचय है। अपने इस परिचय को बचाने के लिए उन्होंंने राजद से विदाई ली है।
रमानंद तिवारी का जो पुत्र किसी नेता के बेटे का जूता नहीं उठाया, वो भला लालू के बेटे का जूता कैसे उठायेगा। मैं इस बात को बार बार इसलिए लिख रही हूं क्योंकि तेजस्वी आज तक लालू यादव के पुत्र के आलावा कुछ नहीं बन पाये। एक नेता के तौर पर बिहार में आज उनकी कोई भूमिका नहीं है। ऐसे में लालू यादव के पुत्र होने मात्र से उनका जूता क्यों उठाया जाये। तेजस्वी के अलावे भी बहुत सारे नेता पुत्र राजनीति में आये, रहे और गये।
क्या अब्दुलबारी सिद्दीकी बतायेंगे कि अगर बडे नेता का पुत्र होना ही नेतृत्व करने के लिए काफी है, तो कर्पूरी का बेटा क्या लालू के बेटे से कमतर थे। क्योंकि लालू की तरह कर्पूरी अपने बेटे को हजारों करोड देकर नहीं गये थे। यही अंतर है ना सिद्दीकी जी रामनाथ और तेजस्वी में.. यह सवाल में राजद के मुस्लिम चेहरा से नहीं बल्कि कर्पूरी के आप्त सचिव से पूछ रही हूं। जगदानंद या फिर रघुवंश ने रामनाथ ठाकुर का जूता क्यों नहीं उठाया। रामनाथ ठाकुर के बदले लालू यादव का नेता के रूप में चुनाव क्यों किया। इसी लिए ना कि लालू हर नजर में रामनाथ ठाकुर से योग्य थे। फिर आज जगदानंद और रघुवंश तेजस्वी का जूता सिर पर लेकर क्यों घूम रहे हैं..ऐसी क्या मजबूरी है जो कर्पूरी के बेटे का नेतृत्व नहीं स्वीकार करनेवाले दो राजपूत आज लालू के बेटे का जूता उठा रहा है।
तेजस्वी को नेता स्वीकारना गलत नहीं था। लालू के बेटे होने के कारण उन्हें इस अवसर से दूर रखना गलत होता, लेकिन तेजस्वी को नेता मानते रहना न केवल परिवारवाद को मजबूत करता है, बल्कि उन तमाम नेताओं पर सवाल भी खडा करता है, जो कर्पूरी के बेटे का जूता नहीं उठाकर लालू के बेटे का जूता माथा पर रखकर समाजवाद क जुगाली कर रहे हैं।
शिवानंद तिवारी ने जो कदम उठाया है, उससे उनको क्या फायदा या घाटा होगा, ये मैं नहीं जानती लेकिन हां, रमानंद तिवारी को आज अपने बेटे पर जरुर गर्व होगा..जिस बेटे के लिए उन्होंने जेपी से बहुत कुछ सुन रखा था…मैं इस फैसले का स्वागत करती हूं। अगर नेतृत्व लडने से भागता हो, तो बेहतर है आप मैदान में उसे छोडकर चले आयें।
कुमुद सिंह – बिहार के सबसे जुझारू पत्रकारों में से एक हैं । फेसबुक पर अपनी दमदार टिप्पणीयों को लेकर प्रसिद्ध हैं । बेबाक अंदाज और शोधपरक आलेख के लिये विख्यात है ।