किसी भी घटना को इवेंट में बदले बग़ैर इस आदमी को रोमांच नहीं आता। कोरोना वायरस जैसे सीरियस मुद्दे पर देश को संबोधित करने के दौरान इसने सबसे ज़्यादा ज़ोर एकदिवसीय जनता कर्फ्यू और 5 बजे थाली-ताली बजाने पर दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री तो कम से कम यह स्वीकार कर लिये कि वो कोरोना से नहीं लड सकते, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री ने तो बताया ही नहीं कि भारत लडने के उपाय कर रहा है या नहीं। घर में कैद हो जाना अगर कोरोना से लडने के उपाय हैं, तो गरीब पाकिस्तान भी यह उपाय कर सकता है।
दुख होता है अपने देश और इस व्यवस्था पर। कोरोना का ईलाज तलाशने का भारत कोई प्रयास कर रहा है.. सेहत विभाग की क्या तैयारी है, दवा का भंडारण क्या है, अस्पतालों और डॉक्टरों की स्थिति क्या है। जांच की सुविधा कैसी है और ईलाज का खर्च कौन उठायेगा, ऐसे तमाम सवालों का जिक्र न के बराबर हुआ।
जिस देश में गोरखपुर और मुजफरपुर जैसे मामले हो चुके हों, वहां ऐसे सवालों का उत्तर देश के प्रधानमंत्री से सुनना चाहती थी। खैर..उनको जो कहना था उन्होंने कहा। जनता कर्फ्यू लगाने से अंबानी के बच्चे तो भूखे नहीं सोयेंगे, लेकिन पिछले एक सप्ताह से कई ऐसे घरों में खाने का संकट पैदा हो चुका है, जो रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं. मोदी जी ने उनके लिए कुछ नहीं कहा, दरअसल उनके घरों में टीवी नहीं है, मोदी जी बोलते तो वो सुनते कहां।
जो रोज कमाते हैं और रोज खाते हैं, उनके लिए सरकार ने क्या इंतजाम किया है, यह सुनना चाहती थी, खैर बडे लोग बडी बात..। बाजार बंद, सिनेमा हॉल बंद, बडे आयोजन बंद… हम तो यही सोच रहे हैं कि पकौडे बेचनेवाले की दुकान कहां लगेगी और वो क्या खायेंगे। यस बैंक का शेयर भी नहीं है उनके पास जो 161 करोड उसे बेचकर निकाल लें।
सवाल है प्रधानमंत्री के कहने पर थाली पीट देने भर से उस पेट की भूख मर सकती है मैं उन तमाम लोगों को थाली पीटने के लिए कहूंगी, लेकिन ऐसा होगा नहीं। जो इस प्रतिबंध ने गरीबों के घर पैदा किया है, वो थाली पीटने से खत्म नहीं होगा।
–
15 दिन के लिए देश को पहले ही बंद कर चुके हैं अब एक दिन के लिए घर का दरबाजा भी बंद करने को कह रहे हैं, वो भी कर लेंगे। सवाल है खायेंगे क्या मोदी जी..कैब चलानेवाले, होटल चलानेवाले, टोटो चलानेवाले येस बैंक के शेयरधारक नहीं हैं..उनके सामने रोजी रोजगार का संकट हैं..दुनिया के तमाम देशों में कोरोना संकट कम और ज्यादा है..ऐसी बेरोजगारी किसी सरकार ने पैदा नहीं की है जो आप पैदा कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री के संबोधन में जो मेन एडवाइज़री/सलाह थी वो गौण हो गई। जो मुख्य गुहार थी, वो पीछे छूट गई। ताली बजवाने के लिए अब देश भर का प्रशासन पहले सायरन बजाएगा। इस तरह कोरोनावायरस उस पांच मिनट की आवाज़ से घबरा जाएगा।
–
अच्छे दिन, नोटबंदी, बालाकोट से लेकर चौकीदार तक के अनुभव से आगे कॉमन ह्यूमन साइकी यही रिसीव करेगी कि घड़ी देखकर पांच बजे पांच मिनट ताली बजाना ही उसका मुख्य काम है। न जनता उनसे ये जानना चाहती है, न प्रधानमंत्री ये बात कहेंगे कि भारत सरकार ने कुल जीडीपी का मात्र 1।03 % स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च ने का प्रावधान बजट में किया है जो सवा अरब की आबादी वाले देश के लिए ऊँट के मुंह में जीरे के सामान है।
- ग्लोबल हैल्थ सिक्योरिटी इंडेक्स 2019 के अनुसार गंभीर संक्रामक रोगों और महामारी से लड़ने की क्षमता के पैमाने पर भारत विश्व में 57वें नम्बर पर आता है।
- नेशनल हैल्थ प्रोफाइल २०१९ के अनुसार भारत में केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों द्वारा संचालित तकरीबन 26,000 सरकारी अस्पताल हैं।
- सरकारी अस्पतालों में पंजीकृत नर्सों और दाइयों की संख्या लगभग 20।5 लाख है, मरीजों के लिए बिस्तरों की संख्या 7।13 लाख के करीब है।
- अब यदि देश की 1।25 अरब की आबादी को सरकारी अस्पतालों की कुल संख्या से भाग दिया जाए तो प्रत्येक एक लाख की आबादी पर मात्र 2 अस्पताल मौजूद हैं।
- प्रति 610 व्यक्तियों पर मात्र 1 नर्स उपलब्ध है। प्रति 10,000लोगों के लिए मुश्किल से 6 बिस्तर उपलब्ध हैं।
- सरकारी अस्पतालों में जरूरी दवाओं और चिकित्सकों की भारी कमी है।
- चिकित्सा जांच के लिए आवश्यक उपकरण या तो उपलब्ध ही नहीं है
- और यदि उपलब्ध भी हैं तो तकनीकी खराबी के कारण बेकार पड़े रहते हैं।
- सरकारी अस्पतालों में चारों तरफ फैली गन्दगी व अन्य चिकित्सकीय कचरा कोरोना जैसे अनेकों जानलेवा वायरसों को खुला आमंत्रण देते प्रतीत होते है।
- ग्रामीण इलाकों में तो स्वास्थ्य सेवाएं अस्तित्व में हैं ही नहीं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्दों में हमेशा ताला लगा रहता है।
- प्राइवेट अस्पताल, जहाँ चिकित्सकों की कमी नहीं है, आधुनिकतम चिकित्सा उपकरण उपलब्ध हैं और स्वच्छता के उच्चतम मानदंडों का पालन किया जाता है, वे अपनी आसमान छूती महँगी चिकित्सा सुविधाओं के कारण इस देश की अधिसंख्य गरीब निम्नवर्गीय आबादी की पहुँच से बाहर हैं।
- सरकारी अस्पतालों एवं स्वास्थ्य सेवाओं में आमजन का विश्वास शून्य के बराबर है।
ऐसे देश का प्रधानमंत्री क्या कहेगा यही कहेगा कि घर में बंद रहिये…
कुमुद सिंह के फेसबुक वाल से साभार