ये संयोग है ,या फिर हम बिहारियों कि ये ताकत है ऐसे समय में जब देश एक विचारधारा के सामने दूम हिलाते खड़ा है उस समय भी उस विचारधारा के सामने आँख में आँख डालकर बात करने वालों में तीन बड़े चेहरे बिहार के हैं । हलाकि इन तीनों के खिलाफ सबसे मुखर विरोध भी बिहार में ही होता है फिर भी इन तीनों ने अपने अपने तरीके से सत्ता को चुनौती दे रहा है ।यह संयोग है कि मुझे इन तीनों के कार्यशैली को करीब से देखने और समझने का मौंका मिला है ।वैचारिक रुप से आप अहसमत हो सकते हैं लेकिन समझदारी और तार्किता कि बात करे तो बड़े बड़े इन तीनों के सामने बौना है ।
मैं शुरुआती दौर से बातचीत में कहता रहा हूं कि प्रशांत किशोर राजनीति का सिर्फ मैनेजमेंट गुरु ही नहीं है इसे राजनैतिक समझदारी भी है जो इसे भीड़ से अलग करता है ।और आज ये 45 मिनट के प्रेस वार्ता में दिखा भी दिया । औऱ यही वजह है कि प्रशांत किशोर के प्रेस वार्ता के बाद बिहार और बिहार के बाहर के लोग भी इन्हें अब गंभीरता से लेने लगे हैं देखिए आगे आगे होता है क्या लेकिन बिहार की राजनीति को जो जाति के चश्मे से देखते रहे उनके लिए आने वाले समय में बिहार शोध का विषय जरुर रहेगा ।
2014 का लोकसभा चुनाव में मुझे याद है नीतीश को लेकर महिला और लड़कियों में ज़बरदस्त क्रेज था कही से भी नहीं लग रहा था कि बिहार में बीजेपी इतनी सीटे जीत जायेगी औऱ नीतीश कुमार दो सीमट जायेंगे ।
बिहार में एक लोकसभा क्षेत्र है झंझारपुर जहां बीजेपी संघ के जमाने से लेकर बीजेपी बनने तक कभी चुनाव नहीं लड़ा था कमल का फूल छाप कोई जानता भी नहीं था मोदी के सभा में सबसे कम भीड़ भी यही देखने को मिला था और जब परिणाम आया तो लाखों वोट से बीजेपी का प्रत्याशी चुनाव जीत गये। संयोग से चार पांच माह बाद इस क्षेत्र के एक विधायक जी का निधन हो गया और उप चुनाव के दौरान मुझे जाने का मौंका मिला मैं उसी गांव में गया जहां नीतीश कुमार के लिए महिलाए अपने पति तक को सूनने को तैयार नहीं था कोई भी महिला बात करने को तैयार नहीं थी आंधे घंटे बाद एक पुरुष घर से हाथ में ढेर सारा पोलिथिन वाला पैकेट लेकर निकला देखिए ये दो सौ पैकेट है भाजपा वाला दिया था कि गांव गांव बूथ पर पोलिंग एजेंट को पहुंचा दिजिएगा देखिए ये सारा मेरे घर में ही किसी बूथ(मतदान केन्द्र) पर बीजेपी का पोलिंग ऐजेंट भी नहीं था तो फिर आप पुछिएगा मोदी जी जीत कैसे गये तो सून लीजिए आपको याद है जब आप आये थे तो उछल उछल कर नीतीश कुमार कह रही थी इसी के बहन बेटा गुजरात में रहता है चुनाव के दो दिन पहले आया था और कहां ये नीतीश जी का चुनाव नहीं है मोदी जी का गुजरात मम्मी गयी है ना उससे पुंछो कैसा देश है मोदी जी पीएम बनेंगे तो देश में गुजरात कि तरह ही विकास होगा फिर क्या था सब मोदी जी को वोट कर दिया ।
उस चुनाव में गुजरात ,दिल्ली औऱ मुबंई में काम करने वाले बिहारी बड़ी संख्या में आया जो बिहार के मजबूत जातिए समीकरण को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था बाद के दिनों में जब इस पर काम करने का मौंका मिला तो पता चला कि ये आइडिया प्रशांत किशोर का ही था । फिर मुझे इस तरह का एहसास कन्हैया के चुनाव के दौरान भी देखने को मिला कन्हैया चुनाव भले ही हार गया लेकिन पूरे बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में बिहारी वोटर का जो वोटिंग ट्रेंड रहा है उससे टिक उलट आम युवा वोटर कन्हैया के साथ खड़ा था ऐसे समय में जब भारत पाकिस्तान के सहारे राष्ट्रवाद चरम पर था ।
ऐसे में बिहार जैसे राज्य में जहां जातिवाद चरम पर है बहुत कुछ बदल नहीं सकता है ये कहना जल्दबाजी होगी क्यों कि जब से पंचायत चुनाव नियमित होना शुरु हुआ है गांव के वोटर का जाति आधारित वोटिंग ट्रेंड कि मानसिकता में बड़ा बदलाव आय़ा है औऱ यही वजह है कि प्रशांत किशोर का यह कहना है 2005 में राष्ट्रीय स्तर पर जहां बिहार खड़ा था आज भी बिहार वहीं खड़ा है विकास हुआ है लेकिन देश के अन्य राज्यों कि तुलना में कुछ भी नहीं हुआ है इस बयान पर चर्चा तो शुरु हो गयी है । वैसे 2020 का विधानसभा चुनाव बिहार के जो तीन बड़े खिलाड़ी रहे हैं लालू ,नीतीश और सुशील मोदी जिनके हाथों 30 वर्षो से बिहार के सत्ता की कुंजी रही है पहली बार किसी और फ्रट से इन्हें मजबूत चुनौती मिलता हुआ तो जरुर दिख रहा है ।
-SANTOSH SINGH, KASISH NEWS, EDITOR