रविशंकर उपाध्याय
पटना। अखबारों को यदि बंधक बनाकर रखिएगा तो फिर यही होगा मुख्यमंत्री महोदय जो आज हो रहा है. आप क्या समझते हैं कि बिहार वैसा ही है जो आपको अधिकारी और कुछ चारण नेता दिखा रहे हैं? ऐसा नहीं है. आपने जो मानदंड स्थापित किये उसी को अापने खुद ही मटियामेट कर दिया. आप यात्राएं करते थे, योजनाओं का हाल देखते थे, लोगों से मिलते थे, जनता दरबार लगाते थे, समस्याओं को खुद ही डील करते थे, अधिकारियों को हड़काकर रखते थे. समीक्षात्मक खबरें छपती थी तो उसपर संज्ञान लेकर कार्रवाई करते थे. उस समय का बिहार ठीक ठाक था. अभी भी ठीक ही है. इतना अच्छा कि जिसपर हमें गर्व होता है. क्योंकि बिहार किसी सत्ता के बल पर तो कभी चला ही नहीं. यह अपने लोगों के कारण चला है, बिहारियों के रग रग में भरे बिहारीपन के कारण चलता है, चलता रहेगा. आपमें भी वहीं बिहारीपन था जो खत्म होता गया है. देश के विभिन्न राज्यों के कुछ सत्तापीठों के धत्तकर्म की आदत आपको भी लग गयी. कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री औसतन अखबारों को महीने में औसतन चार से पांच करोड़ रुपये का विज्ञापन देकर उन्हें मुंह बंद रखने पर मजबूर करते गये. उसकी आदत आपको भी लग गयी. उसके बाद क्या हुआ? जो सही तस्वीर है वह किसी को नहीं दिखे, इसकी रणनीति बनाते रहे. सबकुछ गुलाबी तो जिंदगी में होता भी नहीं है न. कुछ स्याह पन्ने भी जीवन का हिस्सा होते हैं, जिसे स्वीकारना पड़ता है. लेकिन आपने अखबारों को समीक्षात्मक खबरों पर बैन कर दिया. जहां आपको निगेटिविटी दिखती थी दरअसल में वह सच्चाई थी. हम यह छापते थे कि आपकी सड़क अच्छी नहीं बनी है, पुल खराब है, नाले की उड़ाही नहीं हुई है, ऐसा हुआ तो शहर डूब जायेगा, लोग मरेंगे लेकिन आपको वह निगेटिव खबरें लगी. हालांकि हममें से कई लोग उस स्याह पन्ने को अभी भी दिखाते रहते हैं लेकिन उसकी संख्या काफी कम हो गयी है. यह जान लीजिए, निष्पक्ष अखबारों को, उनकी खबरों को जब भी सत्ता या प्रशासन ने आंख, नाक और कान बनाया उसकी तरक्की हुई, जिसने भी उसपर बैन किया उसको जनता ही आज या कल बैन कर देती है. यह आपके साथ भी होगा और आज जाे केंद्र की सत्ता में बैठे हुए हैं, उनके साथ भी भी होगा. संबोधन आपको इस कारण किया है क्योंकि आपसे उम्मीद है. बस और कुछ नहीं. क्योंकि बहुत बुरा होता है उम्मीदों का खत्म हो जाना.
- ये लेखक के निजी विचार हैं।