नयी दिल्ली. जापान की ओर से भारत और ऑस्ट्रेलिया को मिलाकर तीनों का एक फास्ट ट्रैकिंग सप्लाई चेन कॉपोरेशन बनाने का महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर 1 सितंबर को समझौता हो गया. इसकी बारीकियों को तय करने के लिए इन देशों ने अपने-अपने नौकरशाहों को कुछ ही महीने का समय दिया है. हालांकि जापान इस सौदे का नेतृत्व कर रहा है, और हाल के दिनों में सप्लाई चेन के लिए भारत की चीन पर निर्भरता और चीन सीमा पर दिख रही चीनी आक्रामकता ने संयुक्त रूप से देश की चिंताएं बढ़ा दी हैं, जबकि वहीं ऑस्ट्रेलिया चीनी व्यापार प्रतिबंधों से प्रभावित हो रहा है. ऐसे में ये तीनों ही देश बहुत ज्यादा “चीन पर व्यापार के लिए निर्भर” हैं. स्थिर हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में भी इनकी सीधी रुचि है.
संयुक्त मंत्रिस्तरीय सम्मेलन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए आयोजित किया गया था और इसमें ऑस्ट्रेलिया के व्यापार, पर्यटन और निवेश मंत्री, सीनेटर साइमन बर्मिंघम, भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और जापान के अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग मंत्री, काजीयामा हिरोशी शामिल थे.
मालूम हो कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में, आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन एक दृष्टिकोण है जो किसी देश को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि उसने अपने आपूर्ति जोखिम को आपूर्ति करने वाले कई देशों को शामिल कर विविध बना दिया है, बजाय कि सिर्फ एक या कुछ देशों पर निर्भर होने के. जैसे इस मामले में, चीन पर निर्भर होने की बात है.
अमेरिका हाल ही में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है. और अब भी चीन थोड़ा ही पीछे है- दोनों अर्थव्यवस्थाएं करीब हैं – शायद भारत की पसंद के करीब भी. फरवरी 2020 में भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा एक प्रभाव विश्लेषण के अनुसार, 2018 में भारत में आयात में चीन की हिस्सेदारी (चीन द्वारा आपूर्ति की जाने वाली शीर्ष 20 वस्तुओं पर) 14.5% थी. विश्लेषण से पता चला है, पैरासिटामोल जैसी दवाओं के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के लिए भारत पूरी तरह से चीन पर निर्भर है. इलेक्ट्रॉनिक्स में, चीन भारत के आयात का 45 प्रतिशत हिस्सा भेजता है.
चीनी आपूर्ति भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों पर हावी है. महामारी से उत्पन्न आपूर्ति श्रृंखला की समस्याओं से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोटिव पार्ट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, शिपिंग, रसायन और वस्त्र शामिल हैं. ऐसे में अगर इन तीन देशों के बीच आपूर्ति चेन तैयार हो जाता है तो विश्व में चीन और अमेरिका के बाद एक तीसरी ताकत के रूप में यह समूह तैयार हो जायेगा. साथ ही चीन के बाजार पर कब्जा करने का सपना भी टूट जायेगा.