केंद्र सरकार का एक मंत्रालय है. उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय. इसके पास एक चिट्ठी भेजी गई है. 10 मई को भेजी चिट्ठी में कहा गया है कि खाने के सामान पर ‘धार्मिक सर्टिफाइड’ का सर्टिफिकेट लगाए जाने की मंजूरी दी जाए. यह चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट के एक वकील इशकरण सिंह भंडारी ने भेजी है.
साथ ही change.org नाम की वेबसाइट पर अपनी मांग को लेकर पिटिशन भी डाली है. लोगों से ‘धार्मिक सर्टिफाइड’ खाने के सर्टिफिकेट के लिए समर्थन की मांग की गई है. यहां पर इसे 85 हजार से ज्यादा लोगों का समर्थन मिल चुका है. आप आगे जाएं, इससे पहले बता दें कि खाने के सामान पर ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ के जवाब में यह मुहिम शुरू की गई है.
पहले जान लेते हैं हलाल क्या है
इस्लामिक काउंसिल के अनुसार, ‘हलाल’ एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब होता है कानून सम्मत या जिसकी इजाज़त शरिया (इस्लामिक कानून) में दी गई हो. ये शब्द खाने-पीने की चीज़ों, मीट प्रोडक्ट्स, कॉस्मेटिक्स, दवाइयां, खाने में पड़ने वाली चीज़ों- सब पर लागू होता है. ‘हराम’ उसका ठीक उलट होता है. यानी जो चीज़ इस्लाम में वर्जित है.
भारत में हलाल सर्टिफिकेशन का काम मुख्य रूप से जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द जैसे संस्थान करते हैं. हलाल इंडिया, हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया जैसे प्राइवेट संस्थान भी ‘हलाल सर्टिफिकेट’ देते हैं. इनको भारत सरकार की तरफ से रजिस्ट्रेशन मिला हुआ है.
अब बढ़ते हैं ‘धार्मिक सर्टिफाइड’ चिट्ठी की ओर
चिट्ठी में कहा गया है कि सनातन धर्म की परंपराओं और नियमों और सात्विक जरूरतों के हिसाब से दुकानों पर मिलने वाले खाने पर ‘धार्मिक सर्टिफाइड’ लिखा होना चाहिए. पिछले कुछ दिनों में ऐसी घटनाएं हुई हैं, जब कुछ दुकानदारों पर कार्रवाई हुई. इन्होंने धार्मिक जरूरतों, नियमों और परंपराओं के हिसाब से अपने सामान के बारे में बताया था. उदाहरण के लिए झारखंड का जिक्र किया गया है. बताया कि जमशेदपुर में राजकुमार नाम के एक फलवाले ने दुकान पर ‘हिंदू फल दुकान’ लिखा था. इस पर पुलिस ने कार्रवाई की और केस दर्ज कर लिया.
कहा गया है
भारत में शरिया कानून के हिसाब से खाने के सामान पर हलाल सर्टिफिकेशन दिए जाने की मंजूरी है. सरकार की ओर से हलाल सर्टिफिकेट देने वाले कई संगठनों को मंजूरी भी मिली हुई है. आजकल भारत में हलाल सर्टिफिकेट का काफी जिक्र किया जाने लगा है. नॉन वेज सामानों के साथ ही वेज और बिल्डिंगों पर भी हलाल सर्टिफिकेट लिखा जाने लगा है.
आगे लिखा है
इसी के अनुसार, धार्मिक सर्टिफाइड को भी सरकार से मंजूरी मिलनी चाहिए. इसके लिए सरकार से मंजूरी प्राप्त सर्टिफिकेशन संस्था भी बननी चाहिए. ऐसा नहीं होने पर आर्टिकल 14, 19, 21 और आर्टिकल 25 से 28 से मिले मौलिक अधिकारों का हनन होगा.
चिट्ठी लिखने वाले इशकरण सिंह ने धार्मिक सर्टिफाइड खाने को लेकर नियम, निर्देश तैयार करने में सरकार को मदद की पेशकश भी की है. पूरी चिट्ठी यहां देख सकते हैं.
स्वामी ने किया था ट्वीट
बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी 11 मई को इस बारे में ट्वीट किया. उन्होंने लिखा,
इशकरण ने खाद्य मंत्रालय को लिखा है कि हलाल सर्टिफिकेशन की तरह धार्मिक सर्टिफाइड की भी अनुमति होनी चाहिए. हमारे पास एक उदाहरण है. चेन्नई पुलिस ने एक हिंदू दुकान को इसलिए सील कर दिया, क्योंकि उसने खाने को धार्मिक बताया था. यह आर्टिकल 14 का मामला है.
क्या कहते हैं चिट्ठी लिखने वाले वकील
इशकरण सिंह का कहना है कि उन्हें हलाल से कोई दिक्कत नहीं है. अगर कोई इसके तहत प्रॉडक्ट यूज करता है, तो यह उसकी मर्जी है. लेकिन केवल हलाल की मोनोपॉली नहीं होनी चाहिए. अगर कोई सिख या हिंदू नॉनवेज खाना चाहता है, तो उसके पास झटका मीट खाने का ऑप्शन नहीं है. मार्केट में हलाल नॉन वेज मिलता है. एयर इंडिया जैसी सरकारी कंपनी भी खाने में हलाल सर्टिफाइड खाना रखती है. मैक्डॉनल्ड भी हलाल खाना यूज करता है. समस्या यही है.
उन्होंने आगे कहा कि कानून इसलिए चाहते हैं, ताकि कल को कोई धार्मिक फूड बेचे, तो उसे दिक्कत न हो. यानी उसके पास धार्मिक फूड बेचने का लाइसेंस होगा, तो उसे कोई परेशान नहीं करेगा. अभी क्या होता है कि ‘हिंदू फल दुकान’ लिखने पर पुलिस परेशान करती है. सर्टिफिकेशन होने पर ऐसा नहीं होगा. अगर हलाल सही है, तो धार्मिक सर्टिफाइड फूड भी मिलना चाहिए.