लॉकडाउन के कारण फैक्ट्रियां बीते लगभव सवा महीने से बंद पड़ी हैं। इस बार मजदूरों को एक मई की छुट्टी की कोई खुशी नहीं है। उनके सिर पर रोजगार जाने का संकट मंडरा रहा है। मजदूरों को अब फैक्ट्री खुलने का बेसब्री से इंतजार है। फैक्ट्रियों की ठंडी पड़ चुकी चिमनियों को देखकर मजदूरों का दिल बैठ रहा है।
पटना शहर में बिहटा, फतुहा, पाटलिपुत्रा और दीदारगंज के पास चल रहे लगभग दो सौ फैक्ट्रियों के लगभग 20 हजार मजदूर लॉकडाउन में सीधे-सीधे प्रभावित हैं। राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक) के प्रदेश अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश सिंह ने कहा कि इस बार मजदूर दिवस पर मजदूरों के हाथ और पेट दोनो खाली है। इस बार इन्हें वेतन मिलेगा या नहीं यह कहना मुश्किल है। मजदूरों को वेतन के लिए सरकारी सहायता की मांग इनके नियोक्ता उद्यमी कर रहे हैं। राज्य में औद्योगिक क्षेत्रों के मजदूरों की संख्या डेढ़ लाख से कम नहीं होगी।
संगठित क्षेत्र के मजदूरों से ज्यादा परेशानी असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को है। पटना जिला में इन मजदूरों की काफी आबादी है। इंटक प्रदेश अध्यक्ष की माने तो पटना जिला में इनकी संख्या पन्द्रह लाख से ज्यादा है। ये मजदूर दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं।
धैर्य का बांध टूटा
पहला लाकडाउन खत्म होने और *दूसरा लागू होने के बीच हजारों कामगारों के धैर्य का बांध टूट चुका है। वे पैदल और साइकिल से *अपने-अपने गांव के लिए निकल गए। कठिन रास्ते और मुश्किलों से गुजरते हुए हजार किलोमीटर तक की यात्रा करके जब घर पहुंचे तो *कोरोना से बचाव के लिए क्वारंटाइन कर दिए गए। एकांतवास के तय 14 दिन की अवधि काट के जो घर पहुंचे, उनके सामने रोजी-रोटी का संकट है।
आर्थिक मदद शुरू
राज्य सरकारों में बिहार ने बाहर फंसे मजदूरों और जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए 1000 रुपये की सहायता राशि पहुंचाने का काम शुरू किया। राज्य से बाहर फंसे 1 लाख 3 हजार 579 लोगों के खाते में सहायता राशि भेजी गई। उत्तर प्रदेश सरकार भी राज्य से बाहर फंसे करीब दस लाख मजदूरों की घर वापसी सुनिश्चित करने के साथ उन्हें एक हजार रुपये की सहायता राशि दे रही है। साथ ही क्वारंटीन होने के बाद घर जाते वक्त उन्हें 15 दिन का राशन भी दिया जा रहा है।
वापसी की कोशिश
उत्तर प्रदेश ने मजदूरों की घर वापसी के लिए बसें भी मुहैया कराई। इलाज भी कराया। कुछ राज्य सरकारें भी प्रवासी मजदूरों को खाते में सहायता राशि पहुंचाकर फौरी मदद पहुंचा रही है। मजदूरों को उनके इलाके में हीकाम मिले, ऐसी कोशिशें भी *अलग-अलग राज्यों में हो रही हैं। अमल में यह कब आएगा, कहा नहीं जा सकता।