भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organisation – ISRO) के वैज्ञानिक अब भी अपने दूसरे मून मिशन चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के विक्रम लैंडर से संपर्क साधने में लगे हैं। इसरो की मदद के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) भी अपने डीप स्पेस नेटवर्क के तीन सेंटर्स से लगातार चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और लैंडर से संपर्क बनाए हुए है। ये तीन सेंटर्स हैं – स्पेन के मैड्रिड, अमेरिका के कैलिफोर्निया का गोल्डस्टोन और ऑस्ट्रेलिया का कैनबरा। इस तीन जगहों पर लगे ताकतवर एंटीना चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से तो संपर्क साध पा रहे हैं, लेकिन विक्रम लैंडर को भेजे जा रहे संदेशों का कोई जवाब नहीं आ रहा है।
7 सितंबर को तड़के 1.50 बजे के आसपास विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर गिरा था । जिस समय चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चांद पर गिरा, उस समय वहां सुबह थी । यानी सूरज की रोशनी चांद पर पड़नी शुरू हुई थी । चांद का पूरा दिन यानी सूरज की रोशनी वाला पूरा समय पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है । यानी 20 या 21 सितंबर को चांद पर रात हो जाएगी । 14 दिन काम करने का मिशन लेकर गए विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर के मिशन का टाइम पूरा हो जाएगा । चांद पर 20-21 सितंबर को होने वाली रात से कुछ घंटे पहले का वक्त है ।
नासा ने भी जताई चिंता
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लूनर रिकॉनसेंस ऑर्बिटर (LRO) के प्रोजेक्ट साइंटिस्ट नोआ। ई। पेत्रो ने बताया कि चांद पर रात होने लगी है। हमारा LRO विक्रम लैंडर की तस्वीरें तो लेगा, लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि तस्वीरें स्पष्ट आएंगी। क्योंकि, शाम को सूरज की रोशनी कम होती है और ऐसे में चांद की सतह पर मौजूद किसी भी वस्तु की स्पष्ट तस्वीरें लेना एक चुनौतीपूर्ण काम होगा। हो सकता है कि ये तस्वीरें धुंधली हों। लेकिन जो भी तस्वीरें आएंगी, उन्हें हम भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो से साझा करेंगे।
विक्रम से संपर्क हो या न हो, इसरो के नाम 6 उपलब्धियां दर्ज हो चुकी हैं
कहते हैं कि विज्ञान में सफलता और असफलता नहीं होती. सिर्फ प्रयोग होता है. और हर प्रयोग से कुछ नया सीखने को मिलता है. ताकि, अगला प्रयोग और बेहतर हो सके. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organisation – ISRO) का Chandrayaan-2 मून मिशन भी इसरो वैज्ञानिकों के लिए बहुत कुछ सीखाने वाला प्रयोग साबित हुआ है. कई चीजें पहली बार हुई. कई टेक्नोलॉजी पहली बार विकसित की गई. अंतरिक्ष में कक्षा बदलने के दौरान तय गति और तय दूरी में ज्यादा आगे बढ़े. यानी बेहतर ऑर्बिट मैन्यूवरिंग की गई. इससे चंद्रयान-2 के ईंधन को बचाने में मदद मिली. इसरो के नाम 6 उपलब्धियां दर्ज हो चुकी हैं ।
- इसरो ने पहली बार बनाया लैंडर और रोवर ।
- पहली बार किसी प्राकृतिक उपग्रह पर लैंडर-रोवर भेजा ।
- चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार भेजा मिशन ।
- पहली बार किसी सेलेस्टियल बॉडी पर लैंड करने की तकनीक विकसित की ।
- पहली बार लैंडर-रोवर-ऑर्बिटर को एकसाथ लॉन्च किया ।
- पहली बार इस मिशन के लिये विशेष प्रकार के कैमरे और सेंसर्स बनाए गए ।
‘थर्मल इमेज क्या होती है
के सिवन ने लैंडर की ‘थर्मल’ इमेज लेने की बात कही है. ऑर्बिटर में जो कैमरे लगे हुए हैं वो ‘थर्मल’ तस्वीरें लेता है.
हर चीज, जो शून्य डिग्री तापमान में नहीं होती हैं, उससे रेडिएशन होता रहता है. ये रेडिएशन तब तक आंख से नहीं दिखाई देते हैं, जब तक वो चीज़ इतनी गर्म न हो जाए, जिससे आँखों से दिखाई देने वाली रोशनी न निकलने लगे.
जैसे लोहा गर्म करते हैं तो एक सीमा के बाद इससे रोशनी निकलने लगती है, लेकिन इससे साधारण तापमान में रेडिएशन होता रहता है.
इस थर्मल रेडिएशन को ऑर्बिटर में लगे हुए कैमरे कैप्चर करते हैं और एक तस्वीर बनाते हैं और इसी तस्वीर को थर्मल इमेज कहते हैं. ये तस्वीर थोड़ी धुंधली होती हैं, जिनकी व्याख्या करनी पड़ती है. ये वैसी तस्वीर नहीं होती हैं, जैसी हम आम कैमरे से लेते हैं.
सात साल तक कैसे करेगा काम?
इसरो प्रमुख के सिवन ने शनिवार को डीडी न्यूज को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर सात सालों तक काम कर सकेगा, हालांकि लक्ष्य एक साल का ही है.
आख़िर यह कैसे होगा, इस सवाल के जवाब में वैज्ञानिक गौहर रज़ा कहते हैं कि ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर के काम करने के लिए दो तरह की ऊर्जा की ज़रूरत होती है.
एक तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल उपकरणों को चलाने में किया जाता है. ये ऊर्जा, इलेक्ट्रिकल ऊर्जा होती है. इसके लिए उपकरणों पर सोलर पैनल लगाए जाते हैं ताकि सूरज की किरणों से यह ऊर्जा मिल सके.
दूसरी तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर की दिशा बदलने के लिए किया जाता है. यह ज़रूरत बिना ईंधन से पूरी नहीं की जा सकती है.
हमारे ऑर्बिटर में ईंधन अभी बचा हुआ है और यह सात सालों तक काम कर सकेगा.