मिथिला का प्रकृतिपूजक संस्कृति का अद्भुत पर्व है जुड़-शीतल। इस पर्व के संबंध में अयोध्या प्रसाद ‘बहार’ अपने पुस्तक रियाज-ए-तिरहुत में किछु ऐसे ही लिखा है। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में इस पर्व की वैज्ञानिक उपयोगिता और सार्थकता बढ़ गई है। हम पश्चिम देशों की नकल करते-करते अर्थ आवर के नाम पर उस जगह की बत्ती भी बंद कर देते हैं, जहाँ बिजली कभी-कभी आती है। लेकिन क्या पश्चिम समाज ने कभी रसोईघर से निकलते ऊर्जा पर गौर किया है ? क्या उन्होने कभी रसोईघर को आराम देने की कोशिश की है ? नहि । लेकिन मिथिला में एक पुरानी परंपरा है जो हमें ऐसा करने की प्रेरणा देता है। जुड-शीतल मिथिला का एक ऐसा ही महान लोकपर्व है।
आज बहुत लोग इस पर्व के संबंध मे नही जानते हैं, मिथिला में भी यह पर्व सिमटता जा रहा है। अखबार और पत्रिका में भी इस पर्व के संबंध में कोई जानकारी नहि है। उनकी भी मजबूरी है। जुड-शीतल कोई ब्रांड नहीं बन सका है। इस पर्व को न कोई बड़ा नेता मना रहा है और न ही कोई कलाकार या खिलाड़ी। फिर कैसे इसे लिखा या दिखाया जाए । ऐसे में इस पर्व के बारे में बताने के लिये न ही अखबार में जगह है और न ही चैनल मे समय। लेकिन इस पर्व की रोचकता और वैज्ञानिकता इसको मरने से बचाए हुए हैं । अगर इस पर्व को मिथिला के और पर्व जैसे कि छठ और सामा जैसे प्रचारित किया जाय, तो इस अद्भूत पर्व पर पूरा विश्व आकर्षित हो सकता है। मूलरूप से यह पर्व सूचिता अर्थात साफ-सफाई से संबंध रखता है, लेकिन इसका मुख्य कारक ग्लोवल वार्मिंग से बचाना है । दो दिवसीय इस पर्व के पहिले दिन सतुआइन और दुसरे दिन धुरखेल कहा जाता है ।
जुड़ शीतल मानव और प्रकृति से सीधे तौर पर जुड़ा है।
यह समय दो मौसमों का संक्रमण काल होता है। गर्मी के आगमन के कारण वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है। इसके कारण पौधों में जल की मात्रा कम हो जाती है। इसलिए इस पर्व में पौधों में जल देने की परंपरा है। घर की बुजुर्ग महिलाएं अपने से छोटे के सिर पर जल देकर शीतलता का आशीर्वाद देती हैं। ऐसी मान्यता है कि गर्मी के मौसम में जल देने से सिर ठंडा रहता है। मिथिला क्षेत्र में नववर्ष की शुरुआत गर्मी के साथ शुरू होती है और गर्मी से बचाव के लिए बासी जल देकर महिलाएं शीतलता बनी रहे का आशीर्वाद देती हैं।