कई लोग चुपके से मुझे लिख रहे हैं कि तालाबंदी में स्कूल फ़ीस ले रहे हैं। ऐसा है तो इन लोगों को खुद आवाज़ उठानी चाहिए। चुपके से मेरे ऊपर नैतिक दबाव क्यों डालते हैं? दूसरा स्कूल फ़ीस नहीं लेंगे तो टीचर और कर्मचारियों को वेतन नहीं देंगे। स्कूल में बीस तरह के काम करने वाले लोग होते हैं। फिर वो मुझे लिखेंगे।
मेरी राय में तो बच्चों को ले जाने वाले वाहन के चालक को भी फ़ीस देनी चाहिए क्योंकि उसने क़र्ज़ पर गाड़ी ली हुई होती है। वो ग़रीब क्या करेगा। इसलिए संभव है तो स्कूलों की फ़ीस दीजिए। अपने बच्चों के टीचर और उसके परिवार की चिन्ता करे। यह वक्त त्याग करने का है। अगर यह तालाबंदी सितंबर तक खींच गई तब शिक्षक दिवस पर किस मुँह से गुरुओं को प्रणाम करेंगे।
आपने दिखाया भी है कि आप थाली बजाकर त्याग कर सकते हैं। थोड़ा त्याग फ़ीस देकर भी करें। इस देश में सामूहिक नौटंकी का कार्यक्रम इसलिए भी सफल हो जाता है क्योंकि सभी को अपना दोहरापन ढँकने का मौक़ा मिल जाता है। बेहतर है ये सब आप खुद कहें। समूह बनाकर स्कूल से बात करें। सरकार से बातें करें। गोदी मीडिया को भी कुछ काम दें।
अब देखिए लोगों ने थाली तो हर डॉक्टर के लिए बजाई। सरकारी और प्राइवेट दोनों। लेकिन कई सारे प्राइवेट डॉक्टर क्लिनिक बंद कर गए। अस्पताल बंद कर गए। गर्भवती महिलाओं की हालत ख़राब है। क्या इसकी व्यवस्था नहीं हो सकती थी? सरकार ने तो प्राइवेट अस्पतालों को बंद नहीं किया है।
यह पोस्ट रविश कुमार के फेसबुक वाल से बिना किसी एडिटिंग के लिया गया है ।